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नियोगीने अपने भाषण में कहाकि जैन धर्म मार्टिनल्यूथर के प्रोटेस्टेंट धर्मके अनुसार उठ खड़ा हुआ। वेद और महाभारत में जैन धर्म का उल्लेख है । जैनों की संख्याकी न्यूनता कोई महत्व नहीं रखती है, जब तक एकभी जैन जीवित रहेगा, जैन धर्म चलेगा । जैनधर्म पूर्णतया प्रजातन्त्रतावादी धर्म है, जिसमें स्वतंत्रता एकता, प्रेम और सहृदयता का आधिपत्य है। जैनधर्ममें तीन अमूल्य बातें हैं-भक्ति कर्म और ज्ञान जिससे व्यक्तिगत मुक्ति प्राप्त होती है।'
'दैनिक-नवभारत ' नागपुर ता० ३ अप्रेल १६४२ 'लोकमत' , ,, ७,, ,
इस प्रकार इस धर्मकी प्राचीनता, स्वतंत्रता और उत्तम भावनाओंके अनेक प्रमाण इतिहासमें विद्यमान हैं। यह धर्म वैज्ञानिक और स्वतंत्र धर्म होने के कारण सुदृढ़ और सार्वग्राही है । प्रचारकों की कमी और संकीर्णताके कारण इस धर्मका प्रकाश जैसा होना चाहिये था वैसा नहीं होरहा है। इस धर्ममें वीतराग भाव होने के कारण यह न्यायपूर्ण और निष्पक्ष धर्म प्रतीत होता है । इम धर्ममें विशेषकर गुणही पूजा जाता है। जबतो इस धर्म के प्रसिद्ध जैनाचार्य श्रीमद् भट्टाकलंक देवने नीचे के श्लोक में कैसे मनोहर और निष्पक्ष भावोंसे परमात्मा को नमस्कार किया है
यो विश्वं वेद वेद्यं जननजलनिधेङ्गिनः पारदृश्वाः । पूर्पायर्वाविरुद्धं वचनमनुपम निष्कलंकं यदीयम् ॥ तं वंदे साधुवंद्यं सकलगुणनिधिं ध्वस्त दोष द्विषतम् ।
बुद्धं वा वद्धमानं शतदलनिलयं केशवं वा शिवं वा । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com