________________
२४
उपलब्ध होता है। उक्त्त आचार्यने तो जैनधर्मके रत्नत्रय अर्थात्दर्शन, ज्ञान और चरित्रको ही धर्मका मूल तत्व बतलाया है।
साहित्य रत्न-डाक्टर रवीन्द्रनाथ टैगोर पच्चीस वर्ष पूर्व एक सभामें धर्म विषय पर कथन करते हुए आप दर्शाते हैं कि 'महावीर (जैनियों के चौबीसवे तीर्थकर) ने डीम डीम नादसे ऐसा संदेश फैलाया कि धर्म यह मात्र सामाजिक रूढि नहीं है परन्तु वास्तिविक सत्य है। मोक्ष यह बाहरी क्रियाकांड पालनेसे नहीं मिलता परन्तु सत्य धर्म स्वरूपमें आश्रय लेने से मिलता है। धर्म और मनुष्यमें कोई स्थायी भेद नहीं । कहते आश्चर्य होता है कि इस शिक्षाने समाजके हृदयमें जड़कर बैठी हुई दुर्भावनाओं को त्वरा से भेद दिया और सम्पूर्ण देश को पुनः धर्म मार्ग पर अग्रसर करके वशीभूत कर लिया। इसके पश्चात् बहुत समय तक इन क्षत्रीय उपदेशकों के प्रभाव बलसे ब्राह्मणोंकी सत्ता अभिभूत होगई। जैनधर्म में अहिंसा की उत्तम शिक्षा और स्वतंत्र विचार पद्धति धार्मिक क्षेत्रमें अपना विशेष स्थान रखती है' इत्यादि ।
__ मैक्समूलर:
'जैनधर्म हिन्दूधर्मसे सर्वथा स्वतंत्र है। वह उसकी शाखा या रूपान्तर नहीं है क्योंकि प्राचीन भारतमें किसी धर्मसे कुछ तत्व प्रथक लेकर नूतन धर्म प्रचार करने की प्रथाही नहीं थी। यह धर्म बिलकुल स्वतंत्रतापूर्वक अनादि कालसे प्रचलित है।
जर्मन डाक्टर जैकोबीः
'जैन फिलासफीमें बहुतसी आश्चर्यजनक बातें हैं जिसका Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com