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१३९ कि सम्पूर्ण भारतमें महात्मा गांधी के नेतृत्व में अहिंसाके बलपर ही राजनैतिक वातावरण प्रकाश पा रहा है।
इस प्रकार शकेन्द्रको समझाकर प्रभुने पहले स्थूल मन वचन के योगोंको रोक लिया फिर कायाके योगमें स्थिर हुए । पश्चात मन चचन और कायाके सूक्ष्म व्यापारोंको अपने वश किया और शुक्ल ध्यानकी चौथी अवस्थामें अपने अवशेष कर्म बंधनोंसे विलकुल रहित हो कार्तिक बदी अमावश्याकी रात्रिके पिछले प्रहरमें निर्वाण पद, जिससे श्रेष्ठतम दूसरा कोई भी नहीं है प्राप्त किया।
जब भगवान महावीरका निर्वाण कल्याणक हुआ तो नौ लेछकीय और नौ मल्लिकी राजाओंने तथा देवी देवताओंने बड़ी धूमधामसे भगवानका निर्वाणोत्सव मनाया । आत्मज्ञानका करानेवाला भावरूपी प्रकाश तो अव रहा नहीं, इसलिये रत्नादिक द्रव्य पदार्थों द्वारा ही इस भूमण्डलको प्रकाशमान किया गया । बस इसी दिनसे दीपावली उत्सव मनानेकी प्रथा चल पड़ी जो हर साल यथावत भारतवर्षमें धूमधामसे मनायी जाती है। यह दीपावाली (दिवाली) उत्सव भगवान महावीरके ज्ञान रूपी प्रकाशका द्योतक है जो आजकल रत्नादिकोंके अभावमें दीपकों द्वारा मनाया जाता है। इसके पहले दिवाली त्यौहारका उल्लेख भारतके किसी भी धर्मशास्त्रोंमें नहीं मिलता । पश्चात धर्मावलम्बियों ने इसी त्यौहारको अपने शास्त्रोंमें यथावत समयानुकूल अपना लिया ।
भगवान महावीरके कार्तिक वदी १५ की रात्रिको निर्वाणपद प्राप्त हो जानेके बाद दूसरे दिन कार्तिक सुदी २ को भगवान की बहिन सुदर्शनाने अपने भाई राजा नन्दिवर्धनको भोजन कराके शोक दूर कराया । उसी दिन से लोकमें भाई दूज पर्व चालू हुश्रा। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com