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पैदल तो कोई चढ़ ही नहीं सकता, परन्तु लब्धिके योगसे उस पर चढ़ सकते हैं । गौतमस्वामी अपनी परीक्षा करनेके लिये प्रभुकी अाज्ञा लेकर उस ओर रवाना हुए और अपनी लब्धि द्वारा सूर्यकी किरणों का अवलंबनकर उस पर्वत पर चढ़ने लगे जिसके आठ पगथिये थे । जब पहले पगथिये पर पहुंचे तो देखा कि पांचसौ एक तपस्वी कोडिएण तापस प्रमुख एकान्तर उपवासकी तपस्या कर रहे हैं। दूसरे पगथिये पर दिन्न नामके तपस्वी पांच सौ शिष्य सहित दो उपवासके बाद पारणा करने की तपस्या करते दीख पड़े और तीसरे पगथिये पर शैवालि नाम तपस्वीके पांच सौ शिष्य तीन दिन के उपवास के बाद पारणा करने की तपस्यामें जुटे दिखाई दिये। मगर उसके आगे चढने को कोई समर्थ नहीं था। गौतम स्वामी को देख इन तपस्वियोंके मनमें चिन्ता हुई कि तपसे हम लोग कृश हो चुके तो भी इस पर्वत पर न चढ़ सके तब तो यह स्थूल शरीर वाला कैसे चढ़ेगा ? परन्तु गौतमस्वामी को अपनी लब्धि द्वारा देर भी न लगी और अष्टापद पर चढ़े गये । वहां भरत चक्रवर्ती द्वारा कराये हुए उन्होंने चौबीस तीर्थकरों के बिम्ब श्रीजिन प्रतिमा को नमस्कार करके तीर्थ एवं उपवास किया । रात्रि विश्राम वहीं किया और वहीं श्री वज्रस्वामी के जीव जंभक देवको प्रतिबोध किया । प्रातःकाल होते ही देव दर्शन कर जब उतरने लगे तो वे पंद्रहसौ तीन तापस गौतमस्वामी का महात्म्य देख उनके शिष्य हो गये । दीक्षा देने के बाद जब गौतमस्वामीने उनसे पूछा, भो तपस्वियो! आज तुमको किस अहार से पारणा करावें, तब उत्तरमें उन्होंने खीर मांगी । गौतमस्वामीने 'अक्षीण महानसी लब्धि' द्वारा एक ही पात्रसे उन सबको पारा कराया । उस समय तेलेके उपवास बाल पांचसौ एक तपस्वियोंको गुरुका महात्म्य विचारते-विचारते ही Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com