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________________ १२३ राजा कौणिककी सम्मति लेकर मैं भी दीक्षा धारण करूंगी। उसने वैसा ही किया और उसके पीछे नौ रानियोंने भी दीक्षा ग्रहण की। जिस संग्राममें काली कुमार मारे गये उसका संक्षिप्त वर्णन शास्त्रानुकूल इस प्रकार है कि बहुत समयतक राज्य करते हुए राजा श्रण कको उसके पुत्र कौणिकने राज्य के लोभ के कारण पकड़कर कैदमें डाल दिया । कौणिकके दस भाई और भी थे, उनके पास आकर कौणिकने अपने नीच कार्यकी सारी हकीकत कही और उन्हें प्रलोभन दिया कि इस राज्यका स्वामी बनते ही मैं सारा राज्य अपने भाइयोंमें बराबर हिस्सों में बांट दूंगा और बादमें उसने अपना सारा राज्य ग्यारा हिस्सोंमें बांट दिया । पिताको राजबन्दी बनाकर, आप राजा बनकर वह अपनी माताके पास उसका आशीर्वाद लेनको आया । परन्तु पुत्र की नीच. तासे माताको बहुत दुख हुआ । उसने उस नीचको बहुत फटकारा और कहा-'बेटा! क्या इसी नीचताका नाम पितृ भक्ति है । इसी दिन के लिये तेरे दयालु पिताने तुझे पाल पोसकर बड़ा किया था। तुझे याद नहीं है पर सुन ! जब तू मेरे गर्भमें आया तब ही से मेरी गर्भजात भावनाओंमें नीचता आने लगी थी और मैं यह जान गयी था कि इस गर्भका वालक बहुत ही नीच प्रकृतिवाला होगा । इसीलिये तेरे पैदा होते ही मैंने, अपनी कूख लज्जित न हो, तुझे कचरेके घूडमें डलवा दिया था। मगर तेरे दयालु पिता बिना किसोको मालूम हुए तुझे वहांसे उठा लाये और बड़े प्रेमसे तुझे पाला पोसा और इतना बड़ा किया । और आज तूने उन्हें कैदमें डलवा दिया और मेरा आशीर्वाद लेने आया है, तुझे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034732
Book TitleAntim Tirthankar Ahimsa Pravartak Sargnav Bhagwan Mahavir Sankshipta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Vaidmutha
PublisherGulabchand Vaidmutha
Publication Year
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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