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१०४ पुरुषार्थ और पराक्रम कुम्भकार सद्दाल पुत्रका संशय छेदन
स्थान-स्थान विचरते हुए एक दिन प्रभु पोलासपुर पधारे । वहां सहालपुत्र नामका कुम्हार रहता था। वह गौशालाका कट्टर अनुयायी था । वह अपने गुरुके 'नियतिवाद' के सिद्धांतों को इस प्रकार अपना चुका था कि बड़ेसे बड़े विद्वान उसका सामना नहीं करते थे । उसका यह सिद्धांत था कि 'संसारमें जो वस्तु अथवा होनहार होनेवाली होती है वह अवश्य होकर रहती है; उसमें किसी वातका विचार विनिमय करनेकी एवं उगय रचने की कोई आवश्यकता ही नहीं।'
एक दिन प्रभु अपने उपदेशमें श्रोताओंको पुरुषार्थों की महिमा एवं समयानुकूल पराक्रमका उपदेश एवं आत्मरक्षा हेतु समझा रहे थे। उस समय सदाल पुत्र भी वहां बैठा हुआ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष ये चार पुरुषार्थ एवं आत्मरक्षाके हेतु पराक्रम, वल, और वोर्यका विवेचन सुन रहा था । परन्तु उसके मनमें गौशाला का नियतिवाद ही घर कर बैठा था। उसे प्रभुको सर्वज्ञतापर संदेह था तिसपर भी भगवानके प्रति आदर सत्कारकी भावना उसके मनमें जागृत हो रही थी। उसीसे प्रेरित हो, व्याख्यान खतम होने के बाद उसने प्रभुके चरणों में नमन किया और प्रार्थना की कि 'भगवन् ! इसी नगरके बाहर मेरी दूक.नें हैं । अच्छा हो कि मेरी शंका निवारण करने के लिए कुछ कालतक आप वहां ठहरें ।' भगवानने सद्दालकी प्रार्थना स्वीकार कर ली और वहीं पधार गये। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com