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जीव-विज्ञान
स्त्रीवेदी भी हो सकता है, पुरुषवेदी भी हो सकता है और नपुंसक वेदी भी हो सकता है। ऊपर से कोई स्त्रीवेदी हो तो भावों से वह पुरुष वेदी भी हो सकता है, स्त्रीवेदी भी हो सकता है और नपुंसकवेदी भी हो सकता है।
आचार्यों ने यह विषमता मनुष्य और तिर्यंचों में वेद-वैषम्य के रूप में कही है। कहने का तात्पर्य है कि द्रव्यलिंग के सापेक्ष कोई भावलिंगी भी हो ऐसा कोई जरूरी नहीं है। भावों से स्त्री सम्बन्धी परिणति हो सकती है और द्रव्य से लिंग पुरुष का हो सकता है। इसी तरह भावों से पुरुष सम्बन्धी परिणति हो द्रव्य से लिंग स्त्री का हो सकता हैं। इसी को आप नपुंसक के साथ भी घटित कर सकते हैं। इसीलिए सिद्धान्त-ग्रन्थों में जब गुणस्थानों का वर्णन आता है तो उन गुणस्थानों के वर्णन में द्रव्य से तो वह जीव पुरुष लिंग वाला ही होगा लेकिन भावों से श्रेणी चढ़ने वाले वे कोई भी वेद वाले हो सकते हैं। कहने का आशय है कि लिंग शब्द का जो सम्बन्ध होता है वह द्रव्य से भी है और औदयिक भावों में लिंग शब्द आया है तो वह भावों से भी है। जब इस लिंग शब्द का सम्बन्ध हम मोक्षमार्ग की अपेक्षा से देखते हैं तो आचार्य कहते हैं कि द्रव्यलिंग तो पुरुष का ही होना चाहिए। भावों से कोई भी लिंग होगा तो मोक्षमार्ग में कोई भी बाधा नहीं होगी। उपशम श्रेणी, क्षपक श्रेणी के जो गुणस्थान होते हैं उनमें नौवें गुणस्थान में दो भाग हो जाते हैं। नौंवें ही गुणस्थान में एक ऐसी परिणति आ जाती है कि इन वेदों का अनुभव पूर्णतः समाप्त हो जाता है। वेद से रहित जब वह जीव हो जाता है तो उसे अवेदी जीव कहा जाता है। उस अवेद भाव होने के बाद ही दसवें आदि गुणस्थानों में चढ़कर केवलज्ञान आदि की प्राप्ति करता है। अभिप्राय यह है कि पुरुष वेद वाले के लिए मोक्ष होगा यह केवल द्रव्यलिंग की अपेक्षा से है। भावलिंग की अपेक्षा से तीनों वेद हो सकते हैं। मोक्षमार्ग में पुरुष वेदी होना यह अरिहन्त बनने की योग्यता बताई गई है। वह जीव अपने अंदर कषायों को, भावों को उपशम श्रेणी में, क्षपक श्रेणी में समाप्त कर लेता है। उदय के अभाव का वह वेदन करके, वह अवेद होकर उन अवेद भावों का वेदन करता है और तब वह इन तीनों ही वेदों से रहित हो जाता है। जब किसी जीव को मोक्ष मिलता है तो भावों की अपेक्षा से उसके पास कोई वेद नहीं होता है। द्रव्य की अपेक्षा से वह पुरुष वेद कहलाएगा लेकिन भावों की अपेक्षा से वेद रहित होकर ही उसको मोक्ष मिलेगा। इस तरह से यह आगम की व्यवस्था द्रव्य और भाव वेद दोनों के साथ चला करती है।
जो लोग इन द्रव्य और भाव वेद दोनों प्रकार की व्यवस्था को नहीं समझ पाते तो उनके लिए केवल यह कहने में आता है कि स्त्रियों को मोक्ष क्यों नहीं होता है?तो भावों की अपेक्षा से तो उन्हें मोक्ष होता है लेकिन द्रव्य की अपेक्षा से तो केवल पुरुष को ही मोक्ष होता है। द्रव्य की अपेक्षा से पुरुष वेद होना आवश्यक है। मोक्ष के लिए या केवलज्ञान के लिए पुरुष वेद की नियामकता क्यों है?इसके भी आचार्यों ने कारण बताए हैं। आचार्य कहते हैं संहनन के साथ में जो चित्त की स्थिरता होती है वह
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