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जीव-विज्ञान
के कौन से हैं। गर्भजात योनि
अब किन जीवों के कौन से योनिस्थान होते हैं यह भी आचार्य बताने जा रहे हैं। जैसे-देवों व नारकियों के योनिस्थान अचित्त होते हैं। गर्भज जन्म वाले जितने भी जीव होते हैं वे सभी मिश्र योनि वाले होते हैं। ऐसे ही कुछ उपपाद शय्याओं पर शीत योनि होती है, कहीं पर उष्ण योनि होती है और कहीं पर मिश्र होती है। इस तरह देव नारकियों के कुछ उपपाद शीत होते हैं और कुछ उष्ण होते हैं। इसी तरह संवृत और विवृत के विषय में भी आचार्य कहते हैं कि कुछ संवृत योनि वाले जीव और कुछ विवृत योनि वाले जीव होते हैं। जितने भी विकलेन्द्रिय जीव होंगे वे सभी विवृत योनि वाले ही होते हैं। विकलेन्द्रिय का अर्थ है-दो इन्द्रिय, तीन इन्द्रिय और चार इन्द्रिय वाले जीव । देव, नारकी और एकेन्द्रिय जो जीव होते हैं वे संवृत योनि वाले होते हैं। आपने पढ़ा होगा कि चौरासी लाख योनियां होती है। इनके अतिरिक्त, अन्य योनियों का वर्णन आता है जिसमें मनुष्यादि जीवों का जन्म होता है। उन योनियों के आकार के माध्यम से यह निश्चित किया जाता है इसमें यह गर्भ ठहरेगा अथवा नहीं ठहरेगा। उनके लिए भी आचार्यों ने लिखा है-तीन प्रकार की योनि वाले जीव होते हैं। पहली है संखावर्त योनि, दूसरी कर्मोन्नत योनि और तीसरी वंशपत्र योनि । जो संखावर्त योनि होती है उसमें कभी भी गर्भ नहीं ठहरता हैं, यह उसका स्वभाव है। अगर किसी को इस तरह की योनि प्राप्त हुई है तो जीव वहाँ नहीं ठहरेगा और पतन को प्राप्त हो जाएगा।
कूर्मोन्नत योनि के लिए आचार्य कहते हैं जो महापुरुष, तीर्थंकर, चक्रवर्ती, बलदेव आदि होते हैं उनका इस योनि में जन्म होता है।
वंशपत्र योनि एक सामान्य योनि है।
इस तरह से इन योनिस्थानों से भी जीवों की विशेषताएं बन जाती हैं। कौन सा जीव किस योनि में जन्म लेगा। इसके भेद-प्रभेद अन्य शास्त्रों से ग्रहण कर लेना। आचार्य कहते हैं गर्भ जन्म के भी बहुत से भेद हैं। अभी तो जन्म के भेद हुए-गर्भ, सम्मूर्छन और उपपाद । गर्भजन्म किसके होता है?आगे के सूत्र में बताया जा रहा है
जरायुजाण्डजपोतानां गर्भः ।। 33 ।। अर्थ-जरायुज (जैसे मनुष्य), अण्डज (अण्डे से उत्पन्न होने वाला) तथा पोत (जो पैदा होते ही परिपूर्ण शरीर युक्त हो, चलने फिरने लग जावे और जिन पर गर्भ में कोई आवरण नहीं होता) इन जीवों के ही गर्भ जन्म होता है।
गर्भजन्म भी तीन प्रकार का होता है। एक कहलाता है जरायुज, दूसरा अण्डज और तीसरा पोत कहलाता है। तीन प्रकार के ही ये गर्भो के जन्म कहलाएंगे। ये सम्मूर्छन जन्म नहीं कहलाएंगे।
पहला जरायुज जन्म-मनुष्य और तिर्यंचों का होता है। इनका जन्म होने के बाद इनके शरीर पर एक झिल्ली जैसी माँस इत्यादि की एक पर्त लिपटी हुई होती है। गाय आदि के बच्चों को जब
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