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जीव-विज्ञान
औपशमिक-भाव के दो भेद हैं । क्षायिक-भाव के नौ भेद है। मिश्र भाव के अट्ठारह भेद हैं। औदयिक-भाव के इक्कीस भेद हैं और पारिणामिक-भाव के तीन भेद हैं। आगे के सूत्र में आचार्य औपशमिक के दो भेद कौन-कौन से है? उनका वर्णन करने जा रहे हैं। औपशमिक भाव के दो भेद
सम्यक्त्वचारित्रे||३ ।। अर्थ-औपशमिक सम्यक्त्व और औपशमिक चारित्र-ये दो औपशमिक भाव के भेद हैं।
औपशमिक सम्यक्त्व (मोहनीय की 7, 6 अथवा 5 प्रकृतियों के दबने से)
औपशमिक भाव
औपशमिक चारित्र (मोहनीय की 21 प्रकृतियों
के दबने से)
औपशमिक भाव दो प्रकार का है। एक औपशमिक सम्यक्त्व और दूसरा औपशमिक चारित्र। सम्यक्त्व का अर्थ है सम्यग्दर्शन। जो भाव सम्यग्दर्शन के साथ होगा वह कहलाएगा औपशमिक सम्यक्त्व का भाव और जो भाव चारित्र के साथ होगा वह कहलाएगा औपशमिक चारित्र का भाव । हमें इस बात को भलीभांति ज्ञात कर लेना चाहिए कि कुछ ऐसे भी कर्म होते हैं जो सम्यग्दर्शन भी नहीं होने देते और न ही हममें सम्यक-चारित्र को होने देते हैं। जब हम उन कर्मों को दबाएंगे तो जिन कर्मों के दबने से हममें सम्यग्दर्शन उत्पन्न होगा तो वे सम्यग्दर्शन के विरोधी कर्म कहलाएंगे और जिन कर्मों के दबने से हमारे अंदर चारित्र उत्पन्न होगा, वे चारित्र के विरोधी कर्म कहलाएंगे। उन विरोधी कर्मों के दबने ( उपशम करने )से ही औपशमिक सम्यग्दर्शन का भाव उत्पन्न होगा और जो चारित्र को उत्पन्न नहीं होने देते हैं उन कर्मों को जब हम दबाएंगे (उपशम करेंगे ) तो हमारे अंदर औपशमिक चारित्र का भाव उत्पन्न होगा। दो ही प्रकार के औपशमिक भाव होंगे एक सम्यग्दर्शन सम्बन्धी और दूसरा सम्यक्चारित्र सम्बन्धी। यहाँ हमें एक बात ध्यान रखनी चाहिए कि जब भी औपशमिक भाव होगा वह सम्यग्दर्शन और सम्यकचारित्र सम्बन्धी ही होगा। ज्ञानादि में उपशम भाव नहीं होता हैं-यहाँ यह बात स्पष्ट हो जाती है। उपशम सम्यग्दर्शन भी औपशामिक होता है और
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