SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 31
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम सूत्र ४१/२, मूलसूत्र-२/२, पिंडनियुक्ति' रस में फर्क- पतलेपन आदि का फर्क होता है, इसलिए उस प्रकार से अध्यवपूरक दोष का निर्णय कर सकते हैं। इस प्रकार उद्गम के सोलह दोष हुए । उसमें कुछ विशोधि कोटि के हैं और कुछ अविशोधि कोटि के हैं। सूत्र-४२३-४२८ विशोधि कोटि - यानि जितना साधु के लिए सोचा या पकाया हो उतना दूर किया जाए तो बाकी बचा है उसमें से साधु ग्रहण कर सके यानि साधु को लेना कल्पे । अविशोधि कोटि -यानि उतना हिस्सा अलग करने के बावजूद भी साधु ग्रहण न कर सके । यानि साधु को लेना न कल्पे । जिस पात्र में ऐसा यानि अविशोधि कोटि आहार ग्रहण हो गया हो उस पात्र में से ऐसा आहार नीकालकर उस पात्र को भस्म आदि से तीन बार साफ करने के बाद उस पात्र में दूसरा शुद्ध आहार लेना कल्पे । आधाकर्म, सर्वभेद, विभाग उद्देश के अंतिम तीन भेद - समुद्देश, आदेश और समादेश । बादर भक्तपान पूति । मिश्रदोष के अंतिम दो भेद पाखंडी मिश्र और साधु मिश्र, बादर प्राभृतिका, अध्यवपूरक के अंतिम दो स्वगृह पाखंडी अध्यवपूरक और साधु अध्यवपूरक छह दोष में से दश भेद अविशोधि कोटी के हैं । यानि उतना हिस्सा अलग करने के बावजूद भी बाकी का साधु को लेना या खाना न कल्पे । बाकी के दूसरे दोष विशोधि-कोटि के हैं। उद्देशिक के नौ भेद-पूतिदोष, यावदर्थिक मिश्र, यावदर्थिक अध्यवपूरक, परिवर्तित, अभ्याहृत, मालापहृत, आच्छेद्य, अनिसृष्ट, पादुष्करण क्रीत, प्रामित्य सूक्ष्म प्राभृतिका, स्थापना के दो प्रकार | यह सभी विशोधि कोटि है। भिक्षा के लिए घूमने से पात्र में पहले शुद्ध आहार ग्रहण किया हो, उसके बाद अनाभोग आदि के कारण से विशोधि कोटि दोषवाला ग्रहण किया हो, पीछे से पता चले कि यह तो विशोधिकोटि दोषवाला था, तो ग्रहण किए हुए आहार बिना यदि गुझारा हो सके तो वो आहार परठवे । यदि गुझारा न हो सके तो जितना आहार विशोधि दोषवाला था उसे अच्छी प्रकार से देखकर नीकाल दे । अब यदि समान वर्ण और गंधवाला हो यानि पहचान सके ऐसा न हो या इकट्ठा हो गया हो या तो प्रवाही हो तो वो सारा परठवे । फिर भी किसी सूक्ष्म अवयव पात्र में रह गए हो तो भी दूसरा शुद्ध आहार उस पात्र में लाना कल्पे । क्योंकि वो आहार विशोधिकोटि का था इसलिए। सूत्र-४२९ विवेक (परठना) चार प्रकार से - द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव । द्रव्य विवेक - दोषवाले द्रव्य का त्याग । क्षेत्र विवेक - जिस क्षेत्र में द्रव्य का त्याग करे वो, काल विवेक, पता चले कि तुरन्त देर करने से पहले त्याग करे । भाव विवेक - भाव से मूर्छा रखे बिना उसका त्याग करे वो या असठ साधु जिन्हें दोषवाला देखके उसका त्याग करे । पात्र में इकट्ठी हुई गोचरी बिना गुझारा हो सके ऐसा न हो तो सारा शुद्ध और दोषवाले आहार का त्याग करे। गुझारा हो सके ऐसा न हो तो दोषवाले आहार का त्याग करे। सूत्र-४३०-४३२ ____ अशुद्ध आहार त्याग करने में नीचे के अनुसार चतुर्भंगी बने । शुष्क और आर्द्र दोनो समान चीज में गिरा हुआ और अलग चीज में गिरा हुआ उसके चार प्रकार हैं - १. एकदम शुष्क, २. शुष्क में आर्द्र, ३. आर्द्र में शुष्क, ४. आर्द्र में आर्द्र । शुष्क से शुष्क - शुष्क चीज में दूसरी चीज हो, यानि वाल, चने आदि सूखे हैं । वाल में चने हो या चने में वाल हो तो वो सुख से अलग कर सकते हैं । चने में चने या वाल में वाल हो तो जितने दोषवाले हो उतने कपट बिना अलग कर देना, बाकी के कल्पे । शुष्क में आर्द्र - शुष्क चीज में आई चीज हो, यानि वाल, चने आदि में ओसामण, दाल आदि गिरा हो तो पात्र में पानी डालकर पात्र झुकाकर सारा प्रवाही नीकाल दे । बाकी का कल्पे। आर्द्र में शुष्क - आर्द्र चीज में शुष्क चीज गिरी हो । यानि ओसमण, दूध, खीर आदि में चने, वाल आदि गिरे हो तो पात्र में हाथ आदि डालकर चने नीकाल सके उतना नीकालना, बचा हुआ कल्पे । आर्द्र में आर्द्र - आर्द्र चीज में आई चीज गिर गई हो यानि ओसामण आदि में ओसामण गिरा हो तो, यदि वो द्रव्य दुर्लभ हो यानि दूसरा मिल मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(पिंडनियुक्ति)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद” Page 31
SR No.034710
Book TitleAgam 41 2 Pindniryukti Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages56
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 41 2, & agam_pindniryukti
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy