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________________ आगम सूत्र १७, उपांगसूत्र-६, 'चन्द्रप्रज्ञप्ति' प्राभृत/प्राभृतप्राभृत/सूत्र सूत्र-१४७-१५० कालोद समुद्र की परिधि साधिक ९१७०६०५ योजन है । कालोद समुद्र में ४२-चंद्र, ४२-सूर्य दिप्त हैं, वह सम्बद्धलेश्या से भ्रमण करते हैं। कालोद समुद्र में ११७६ नक्षत्र एवं ३६९६ महाग्रह हैं । उसमें २८,१२९५० कोड़ाकोड़ी तारागण हैं। सूत्र-१५१-१५५ पुष्करवर नामका वृत्त-वलयाकार यावत् समचक्रवाल संस्थित द्वीप है कालोद समद्र को चारों ओर से घीरे हए है । पुष्करवर द्वीप का चक्रवाल विष्कम्भ सोलह लाख योजन है और उसकी परिधि १,९२,४९,८४९ योजन है। पुष्करवरद्वीप में १४४ चंद्र प्रभासित हुए हैं होते हैं और होंगे, १४४ सूर्य तापीत करते थे करते हैं और करेंगे, ४०३२ नक्षत्रों ने योग किया था करते हैं और करेंगे, १२६७२ महाग्रह भ्रमण करते थे करते हैं और करेंगे, ९६४४४०० कोड़ाकोड़ी तारागण शोभित होते थे-होते हैं और होंगे। पुष्करवर द्वीप का परिक्षेप १९२४९८४९ योजन है । पुष्करवर द्वीप में १४४ चंद्र और १४४ सूर्य भ्रमण करते हैं एवं प्रकाश करते हैं । उसमें ४०३२ नक्षत्र एवं १२६७२ महाग्रह हैं । ९६४४४०० कोड़ाकोड़ी तारागण पुष्करवर द्वीप में हैं। सूत्र-१५६ इस पुष्करवर द्वीप के बहुमध्य देश भाग में मानुषोत्तर नामक पर्वत है, वृत्त एवं वलयाकार है, जिसके द्वारा पुष्करवर द्वीप के एक समान दो विभाग होते हैं अभ्यन्तर पुष्करावर्ध और बाह्य पुष्करावर्ध | अभ्यन्तर पुष्करावर्ध द्वीप समचक्रवाल संस्थित है, उसका चक्रवाल विष्कम्भ आठ लाख योजन है, परिधि १४२३०२४९ प्रमाण है, उसमें ७२ चंद्र प्रभासित हुए थे होते हैं और होंगे, ७२-सूर्य तपे थे तपते हैं और तपेंगे, २०१६ नक्षत्रों ने योग किया था करते हैं और करेंगे, ६३३६ महाग्रह भ्रमण करते थे-करते हैं और करेंगे, ४८२२०० कोड़ाकोड़ी तारागण शोभित हए थे-होते हैं और होंगे। सूत्र-१५७.१५८ अभ्यंतर पुष्करार्ध का विष्कम्भ आठ लाख योजन है और पूरे मनुष्य क्षेत्र का विष्कम्भ ४५ लाख योजन है, मनुष्य क्षेत्र का परिक्षेप १००४२२४९ योजन है। सूत्र-१५९-१६१ अर्ध पुष्करवरद्वीप में ७२-चंद्र, ७२-सूर्य दिप्त हैं, विचरण करते हैं और इस द्वीप को प्रकाशित करते हैं । इस में ६३३६ महाग्रह और २०१६ नक्षत्र हैं । पुष्करवरार्ध में ४८२२२०० कोड़ाकोड़ी तारागण हैं । सूत्र-१६२-१६४ सकल मनुष्यलोक को १३२-चंद्र और १३२-सूर्य प्रकाशित करके भ्रमण करते हैं । तथा इसमें ११६१६ महाग्रह तथा ३६९६ नक्षत्र हैं । इसमें ८८४०७०० कोड़ाकोड़ी तारागण है। सूत्र-१६५ मनुष्यलोक में पूर्वोक्त तारागण हैं और मनुष्यलोक के बाहर असंख्यात तारागण जिनेश्वर भगवंत ने प्रतिपादित किये हैं। सूत्र-१६६ मनुष्यलोक में स्थित तारागण का संस्थान कलंबपुष्प के समान बताया है। सूत्र-१६७ सूर्य, चंद्र,ग्रह, नक्षत्र और तारागण मनुष्यलोक में प्ररूपित किये हैं, उसके नामगोत्र प्राकत पुरुषों ने बताए नहीं मुनि दीपरत्नसागर कृत्" (चन्द्रप्रज्ञप्ति) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 45
SR No.034684
Book TitleAgam 17 Chandrapragnapti Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 17, & agam_chandrapragnapti
File Size2 MB
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