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आगम सूत्र १७, उपांगसूत्र-६, 'चन्द्रप्रज्ञप्ति'
प्राभृत/प्राभृतप्राभृत/सूत्र
प्राभृत-१३ सूत्र-११२
हे भगवन् ! चंद्रमा की क्षयवृद्धि कैसे होती है ? ८८५ मुहूर्त एवं एक मुहूर्त के ३०/६२ भाग से शुक्लपक्ष से कृष्णपक्षमें गमन करके चंद्र ४४२ मुहूर्त एवं एक मुहूर्त के ४६/६२ भाग यावत् इतने मुहूर्त में चंद्र राहुविमान प्रभा से रंजित होता है, तब प्रथम दिन का एक भाग यावत् पंद्रहवे दिन का पन्द्रहवे भाग में चंद्र रक्त होता है, शेष समय में चंद्र रक्त या विरक्त होता है । यह पन्द्रहवा दिन अमावास्या होता है, यह है प्रथम पक्ष । इस कृष्णपक्ष से शुक्लपक्ष में गमन करता हआ चंद्र ४४२ मुहर्त एवं एक मुहर्त के छयालीस बासठांश भाग से चंद्र विरक्त होता जाता है, एकम में एक भाग से यावत् पूर्णिमा को पन्द्रह भाग से विरक्त होता है, यह है पूर्णिमा और दूसरा पक्ष । सूत्र- ११३
निश्चय से एक युग में बासठ पूर्णिमा और बासठ अमावास्या होती है, बासठवीं पूर्णिमा सम्पूर्ण विरक्त और बासठवीं अमावास्या सम्पूर्ण रक्त होती है । यह १२४ पक्ष हुए । पाँच संवत्सर काल से यावत् किंचित् न्यून १२४ प्रमाण समय असंख्यात समय देशरक्त और विरक्त होता है । अमावास्या और पूर्णिमा का अन्तर ४४२ मुहूर्त एवं एक मुहूर्त के छयालीस बासठांश भाग प्रमाण होता है | अमावास्या से अमावास्या का अन्तर ८८५ मुहूर्त एवं एक मुहूर्त के बत्तीस बासठांश भाग प्रमाण होता है, पूर्णिमा से पूर्णिमा का अन्तर इसी तरह समझना । यही चंद्र मास है सूत्र-११४
चंद्र अर्धचान्द्र मास में कितने मंडल में गमन करता है ? वह चौदह मंडल एवं पन्द्रहवा मंडल का चतुर्थांश भाग गमन करता है । सूर्य क अर्द्धमास में चंद्र सोलह मंडल में गमन करता है । सोलह मंडल चारी वही चंद्र का उदय होता है और दूसरे दो अष्टक में निष्क्रम्यमान चंद्र पूर्णिमा में प्रवेश करता हुआ गमन करता है । प्रथम अयन से दक्षिण भाग की तरफ से प्रवेश करता हुआ चंद्र सात अर्धमंडल में गमन करता है, वह सात अर्द्धमंडल हैं दूसरा, चौथा, छट्ठा, आठवां, दसवां, बारहवां और चौदहवां । प्रथम अयन में गमन करता हुआ चंद्र पूर्वोक्त मंडलों में उत्तर भाग से आरंभ करके अन्तराभिमुख प्रवेश करके छह मंडल और सातवे मंडल का तेरह सडसठांश भाग में प्रवेश करके गमन करता है, यह छह मंडल हैं तीसरा, पाँचवां, सातवां, नववां, ग्यारहवां और तेरहवां एवं पन्द्रहवें अर्ध-मंडल में वह तेरह सडसठांश भाग गमन करता है । चंद्र का यह पहला अयन पूर्ण हुआ।
जो नक्षत्र अर्धमास हैं वह चंद्र अर्धमास नहीं हैं और जो चंद्र अर्धमास हैं वह नक्षत्र अर्धमास नहीं हैं फिर नाक्षत्र अर्धमास का चंद्र, चंद्र अर्धमास में तुल्य समय में कैसे गमन करता है? एक अर्धमंडल में गमन करके चारसठ्यंश भाग एवं एकतीश सडसठांश भाग से छेद करके नव भाग से गमन करता है । दूसरे अयन में गमन करता चंद्र पूर्व भाग से नीकलकर सात चोपन्न जाकर अन्य द्वारा चिर्ण मार्ग में गमन करता है, सात तेरह जाकर फिर अपने द्वारा चिर्ण मार्ग में गमन करता है, पश्चिम भाग से नीकलकर छ-चौप्पन जाकर दूसरे द्वारा चीर्ण मार्ग में और फिर छ तेरह जाकर स्वयंचीर्ण मार्ग में गमन करता है, दो तेरह जाकर कोई असामान्य मार्ग में गमन करता है । उस समय सर्व अभ्यंतर मंडल से नीकलकर सर्व बाहामंडल में गमन करता है तब दो तेरह जाकर चंद्र किसी असामान्य मार्ग में स्वयमेव प्रवेश करके गमन करता है। इस तरह दूसरा अयन पूर्ण होता है।
चंद्र और नक्षत्र मास एक नहीं होते फिर भी तुल्य समय में चंद्र कैसे गमन करता है ? वह दो अर्द्धमंडल में गमन करते हुए आठ सडसठांश भाग अर्द्ध मंडल को इकतीस सडसठांश भाग से छेदकर अट्ठारहवे भाग में द्वितीय अयन में प्रवेश करता हुआ चंद्र पश्चिम भाग से प्रवेश करता हुआ अनन्तर बाह्य पश्चिम के अर्द्धमंडल के एकचालीस सडसठांश भाग जाकर स्वयं अथवा दूसरे द्वारा चीर्ण मार्ग में गमन करके तेरह सडसठांश भाग जाकर दूसरे द्वारा चीर्ण मार्ग में गमन करता है फिर तेरह सडसठांश भाग जा कर स्वयं या परिचर्ण मार्ग में गमन करता है, इस तरह अनन्तर ऐसे बाह्य पश्चिम मंडल को समाप्त करता है
तीसरे अयन में गया हुआ चंद्र पूर्व भाग से प्रवेश करते हुए बाह्य तृतीय पूर्व दिशा के अर्धमंडल को एकमुनि दीपरत्नसागर कृत्" (चन्द्रप्रज्ञप्ति) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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