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आगम सूत्र १७, उपांगसूत्र-६, 'चन्द्रप्रज्ञप्ति'
प्राभृत/प्राभृतप्राभृत/सूत्र चौबीस पर्व (पक्ष) के और अभिवर्धित संवत्सर छब्बीस-छब्बीस पर्व के होते हैं । इस प्रकार सब मिलाकर पंच संवत्सर का एक युग १२४ पर्वो (पक्षों) का होता है।
सूत्र-८३
प्रमाण संवत्सर पाँच प्रकार का है । नक्षत्र, चन्द्र, ऋतु, आदित्य और अभिवर्धित ।
सूत्र-८४
लक्षण संवत्सर पाँच प्रकार का है। नक्षत्र यावत् अभिवर्द्धित । उसका वर्णन इस प्रकार से हैसूत्र-८५
समग्र नक्षत्र योग करते हैं, समग्र ऋतु का परिवर्तन होता है, अतिशीत या अतिउष्ण नहीं ऐसे बहुउदक नक्षत्र होते हैं। सूत्र-८६
चंद्र सर्व पूर्णमासी में विषमचारी नक्षत्र से योग करता है । कटुक-बहुउदक वालों को चांद्रसंवत्सर कहते हैं सूत्र-८७
विषमप्रवाल का परिणमन, ऋतुरहित पुष्प-फलकी प्राप्ति, वर्षा विषम बरसना, वह ऋतुसंवत्सर कर्म है सूत्र-८८
आदित्य संवत्सर में पृथ्वी और पानी को रस तथा पुष्प-फल देता है, अल्प वर्षा से भी सरस ऐसी सम्यक निष्पत्ति होती है। सूत्र-८९
अभिवर्द्धित संवत्सर में सूर्य का ताप तेज होता है, क्षणलव दिवस में ऋतु परिवर्तित होती है, निम्नस्थल की पूर्ति होती है। सूत्र-९०
शनिश्चर संवत्सर अट्ठाईस प्रकार का होता है-अभिजीत, श्रवण यावत् उत्तराषाढ़ा अथवा तीस संवत्सर में शनिश्चर महाग्रह सर्व नक्षत्र मंडलों में परिभ्रमण करता है।
प्राभृत-१० - प्राभृत-प्राभृत-२१ सूत्र-९१
हे भगवन् ! नक्षत्र ज्योतिष्क द्वारा किस प्रकार से हैं ? इस विषय में यह पाँच प्रतिपत्तियाँ हैं । एक कहता है कि कृत्तिकादि सात नक्षत्र पंच द्वारवाले हैं, दूसरा मघादि सात को पूर्वद्वारीय कहता है, तीसरा घनिष्ठादि सात को, चौथा अश्विनी आदि सात को और पाँचवा भरणी आदि सात नक्षत्र को पूर्वद्वारीय कहता है । जो कृतिकादि सात को पूर्वद्वारीय कहते हैं उनके मत से मघादि सात दक्षिण द्वारीय हैं, अनुराधादि सात पश्चिमद्वारीय हैं और घनिष्ठादि सात उत्तरद्वारीय हैं । जो मघादि सात को पूर्वद्वारीय बताते हैं, उनके मतानुसार अनुराधादि सात नक्षत्र दक्षिणद्वारीय हैं, घनिष्ठादि सात नक्षत्र पश्चिमद्वारीय हैं तथा कृतिकादि सात नक्षत्र उत्तरद्वारीय हैं।
जो घनिष्ठादि सात नक्षत्र को पूर्वद्वारीय बताते हैं, उनके मत से कृतिकादि सात नक्षत्र दक्षिणद्वारीय हैं, मघादि सात नक्षत्र पश्चिमद्वारीय हैं और अनुराधादि सात नक्षत्र उत्तरद्वारीय हैं । जो अश्विनी आदि सात नक्षत्र को पूर्वद्वारीय बताते हैं, उनके मत से-पुष्यादि सात नक्षत्र दक्षिणद्वारीय हैं, स्वाति आदि सात नक्षत्र पश्चिमद्वारीय हैं और अभिजीत आदि सात नक्षत्र उत्तरद्वारीय हैं । भरणी आदि सात नक्षत्र को पूर्वद्वारीय बताते हैं, उनके मत से -आश्लेषादि ७ नक्षत्र दक्षिणद्वारीय हैं, विशाखादि सात नक्षत्र पश्चिमद्वारीय हैं, श्रवणादि ७ नक्षत्र उत्तरद्वारीय हैं।
भगवंत फरमाते हैं कि अभिजीत, श्रवण, घनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपदा, उत्तराभाद्रपदा और रेवती ये सात पूर्वद्वारीय हैं; अश्विनी, भरणी, कृतिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा और पुनर्वसु ये सात नक्षत्र दक्षिणद्वारीय हैं: पुष्य,
मुनि दीपरत्नसागर कृत्" (चन्द्रप्रज्ञप्ति) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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