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आगम सूत्र १७, उपांगसूत्र-६, 'चन्द्रप्रज्ञप्ति'
प्राभृत/प्राभृतप्राभृत/सूत्र प्राभृत-१०
प्राभृत-प्राभृत-१ सूत्र -४६
योग अर्थात् नक्षत्रों की युति के सम्बन्ध में वस्तु का आवलिकानिपात कैसे होता है ? इस विषय में पाँच प्रतिपत्तियाँ हैं - एक कहता है- नक्षत्र कृतिका से भरणी तक है । दूसरा कहता है-मघा से अश्लेषा पर्यन्त नक्षत्र हैं। तीसरा कहता है-धनिष्ठा से श्रवण तक सब नक्षत्र हैं । चौथा - अश्विनी से रेवती तक नक्षत्र आवलिका है । पाँचवा - नक्षत्र भरणी से अश्विनी तक है । भगवंत फरमाते हैं कि यह आवलिका अभिजीत से उत्तराषाढ़ा है।
प्राभृत-१०- प्राभृत-प्राभृत-२ सूत्र-४७
नक्षत्र का मुहूर्त प्रमाण किस तरह है ? भगवंत कहते हैं कि इन अट्ठाईस नक्षत्रों में ऐसे भी नक्षत्र हैं, जो नवमुहूर्त एवं एक मुहूर्त के सत्ताईस सडसट्ठांश भाग पर्यन्त चन्द्रमा के साथ योग करते हैं । फिर पन्द्रह मुहूर्त से - तीस मुहूर्त से-४५ मुहूर्त से चन्द्रमा से योग करनेवाले विभिन्न नक्षत्र भी हैं, वह इस प्रकार हैं नवमुहूर्त एवं एक मुहूर्त के सत्ताईस सडसट्ठांश भाग से चन्द्रमा के साथ योग करनेवाला एक अभिजित नक्षत्र है; पन्द्रह मुहूर्त से चन्द्रमा के साथ योग करनेवाले नक्षत्र छह हैं शतभिषा, भरणी, आर्द्रा, आश्लेषा, स्वाती और ज्येष्ठा; तीस मुहूर्त से चन्द्रमा के साथ योग करनेवाले पन्द्रह नक्षत्र हैं श्रवण, धनिष्ठा, पूर्वाभाद्रपदा, रेवती, अश्विनी, कृतिका, मृगशिरा, पुष्य, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, अनुराधा, मूल और पूर्वाषाढ़ा; ४५ मुहूर्त से चन्द्रमा के साथ योग करनेवाले नक्षत्र छह हैं उत्तराभाद्रपदा, रोहिणी, पुनर्वसु, उत्तराफाल्गुनी, विशाखा और उत्तराषाढा । सूत्र-४८
इन अट्ठावीश नक्षत्रों में सूर्य के साथ योग करनेवाले नक्षत्र भी हैं । एक नक्षत्र ऐसा है जो सूर्य के साथ चार अहोरात्र एवं छ मुहूर्त तक योग करता है - अभिजित; छ नक्षत्र ऐसे हैं जो सूर्य के साथ छ अहोरात्र एवं २१ मुहूर्त पर्यन्त योग करते हैं शतभिषा, भरणी, आर्द्रा, अश्लेषा, स्वाति और ज्येष्ठा, १५ नक्षत्र ऐसे हैं जो सूर्य के साथ १३ अहोरात्र एवं १२ मुहूर्त पर्यन्त योग करते हैं श्रवण, घनिष्ठा, पूर्वाभाद्रपदा, रेवती, अश्विनी, कृतिका, मृगशिरा, पुष्य, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, अनुराधा, मूल और पूर्वाषाढा; छह नक्षत्र ऐसे हैं जो सूर्य के साथ २० अहोरात्र एवं तीन मुहूर्त तक योग करते हैं-उत्तराभाद्रपदा, रोहिणी, पुनर्वसु, उत्तराफाल्गुनी, विशाखा और उत्तराषाढा।
प्राभृत-१०- प्राभृत-प्राभृत-३ सूत्र-४९
हे भगवंत! अहोरात्र भाग सम्बन्धी नक्षत्र कितने हैं ? इन २८ नक्षत्रों में ६ नक्षत्र ऐसे हैं जो पूर्व-भागा तथा समक्षेत्र कहलाते हैं, वे ३० मुहूर्त्तवाले होते हैं पूर्वोप्रोष्ठपदा, कृतिका, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, मूल और पूर्वाषाढा, दश नक्षत्र ऐसे हैं जो पश्चातभागा तथा समक्षेत्र कहलाते हैं, वे भी तीस मुहूर्त्तवाले हैं अभिजित्, श्रवण, घनिष्ठा, रेवती, अश्विनी, मृगशिर, पुष्य, हस्त, चित्रा और अनुराधा, ६ नक्षत्र नक्तंभागा अर्थात् रात्रिगत तथा अर्द्धक्षेत्र वाले हैं, वे १५ मुहूर्त वाले होते हैं शतभिषा, भरणी, आर्द्रा, अश्लेषा, स्वाति और ज्येष्ठा, छह नक्षत्र उभयं-भागा अर्थात् दोढ़ क्षेत्र कहलाते हैं, वे ४५ मुहर्त्तवाले होते हैं-उत्तराभाद्रपदा, रोहिणी, पुनर्वसु, उत्तराफाल्गुनी, विशाखा और उत्तराषाढ़ा।
प्राभृत-१०- प्राभृत-प्राभृत-४ सूत्र -५०
नक्षत्रों के चंद्र के साथ योग का आदि कैसे प्रतिपादित किया है ? अभिजीत् और श्रवण ये दो नक्षत्र पश्चात् भागा समक्षेत्रा है, वे चन्द्रमा के साथ सातिरेक ऊनचालीश मुहूर्त योग करके रहते हैं अर्थात् एक रात्रि और सातिरेक एक दिन तक चन्द्र के साथ व्याप्त रह कर अनुपरिवर्तन करते हैं और शाम को चंद्र धनिष्ठा के साथ योग करता है।
मुनि दीपरत्नसागर कृत्" (चन्द्रप्रज्ञप्ति) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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