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जगाडेली प्रवर्तनीये पुछयु के, ते सर्पने शी रीते जाणयो ? पछी तेणीने केवलज्ञान थएलं जाणीने पोते पण खभावती यकी केवलज्ञान पामी।"
अर्थात्- एक दिन कौशाम्बी नगरीमें श्री महावीर स्वामीकी वंदना करनेके लिये सूर्य और चन्द्रमा अपने मूल विमानों सहित आये। उस समय चतुर चंदना दिन छिपता जानकर अपने स्थानपर चली गई
और मृगावती नामक साध्वी ( आर्यिका ) सूर्य चन्द्रमाके चले जानेपर जब रात्रि हो गई तष उपाश्रयमें चंदनाके सामने प्रतिक्रमण ( लगे हुए. दोषोंका पश्चाताप ) करते हुए चंदनासे कहने लगी कि मेरा अपराध क्षमा करो । तब चंदनाने उससे कहा कि दे भद्रे ! तुम कुलीन स्त्री हो रातके समय बाहर रहना तुमको योग्य नहीं । तब मृगावती ने चंदनासे कहा कि फिर ऐसा कार्य नहीं करूंगी। ऐसा कहकर वह चंदनाके पैरोंपर गिर पड़ी । इतनेमें चंदना को नींद आगई । और मगा. वतीको उसी प्रकार चंदनाके पैरोंपर पंड हुए अपना अपराध क्षमा कराते हुए केवलज्ञान उत्पन्न हो गया। तदनंतर उस उपाश्रयमें एक सर्प भाया, उस सर्पको मृगावतीने अपने केवलज्ञानसे जान लिया । सर्पके जानेके मार्गमें सोती हुई चंदनाका हाथ रक्खा हुआ था सो मृगावतीने केवलज्ञानसे जान उसका हाथ एक ओर हटा दिया । हाथ हटानेसे चंदना जाग गई और उसने अपने हाथ हटानेका कारण पछा; तब उसको मृगावती के कहनेसे मालम हुआ कि यहां एक सर्प आया था उससे बचानेके लिए मृगावतीने मेरा हाथ एक ओर हटा दिया था। तब चंदनाने मृगावतीसे पुछा ऐसे ताद अंधकारमें तुमको सर्प कैसे जान पडा ! तब मृगावतीके कहनेसे उसको केवलज्ञान उत्पन्न हुआ जानकर चंदना अपने दोषोंको मृगावतीसे क्षमा कराने लगी और उस प्रकार क्षमा कराते हुए उसको केवलज्ञान हो गया।
यह कथा बहू इसी रूपमें पं. काशीनाथजी जैन कारकता लिखित तथा उन्हीके द्वारा सन १९२३ में प्रकाशित · चंदनवाला , नामक पुस्तकमें लिखी गई है। केवल इतना विशेष है कि ५५ वें पष्ठपर केवलज्ञान धारिणी मृगावती चंदनासे केवलज्ञान उत्पन्न होनेके कारणमें यों कहती है कि-" यह सब भापकी कपा है।"
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