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था । गर्भहरणकी बात कल्पित तथा सर्वथा असत्य है; एवं श्री महावीर स्वामी पर पापजनक असत्य कलंक का टीका लगाना है श्री महावीर स्वामीने स्वर्गसे चयकर सिद्धार्थ राजाकी रानी त्रिशला के उदर में ही जन्म लिया था तदनुसार इन्द्रने आकर उनका गर्भकल्याणक भी त्रिशजा रानी तथा सिद्धार्थ राजाके घर ही किया था और गर्भावतार से ६ मास पहले कुबेरद्वारा रत्नवृष्टि भी सिद्धार्थ राजाके घर ही हुई थी ।
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अन्यलिङ्गमुक्ति समीक्षा
क्या अजैनमार्ग से भी मुक्ति होती है ? श्वेताम्बर सम्प्रदाय में एक बात और भी विचित्र बतलाई गई हैं कि अन्यलिंगी साधु भी मोक्ष प्राप्त करलेता है । इसलिये उसको जैनलिंग धारण करने की आवश्यकता नहीं। यह बात ऐसी है कि जिसको श्वेताम्बर मतके सिवाय अन्य किसीभी मतने स्वीकार नहीं किया । सभी मत यह कहते हैं कि हमारे बतलाये हुए सिद्धान्तों के अनुसार चलने से ही मुक्ति होगी । अन्यथा नहीं । किन्तु श्वेताम्बर संप्रदाय अपने आपको सत्यधर्म धारक सम्प्रदाय समझता हुआ भी कहता है कि मनुष्य चाहे जिस मतका अनुयायी क्यों न हो, आत्माकी भावना करने से मुक्ति पालेता है।
वीर सं. २४४७ में श्री माणिकचंद्र दिगम्बर जैन ग्रंथ मालाके १ व पुष्परूप प्रकाशित षट्प्राभृत ग्रंथके १२ में पृष्ठपर किसी श्वेताम्बर ग्रंथी यह गाथा लिखी हैं
सेयंवरो आसांबरोये बुद्धोय तहय अष्णोय । Here at सिद्धि ण संदेहो ||
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अर्थात् मनुष्य चाहे तो श्वेताम्वर हो या दिगम्बर हो बौद्ध हो अथवा अन्य लिंगधारी ही क्यों न हो; अपनी आत्माकी भावना करनेसे मुक्ति प्राप्त कर लेता है इसमें संदेह नहीं है ।
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