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भादिका अवतार नीच कुलमें हो जावे किन्तु उनकी योनिमसे जन्म न तो हुआ है और न होगा।
इस प्रकार सोच विचार कर इन्द्रने जो किया सो कल्पसूत्रके २३ वें, पृष्ठभर यों लिखा है
" शक इन्द्र पोतानुं चिंतवेलु हरिणेगमेषी देवने कहे छ । वली कहे छे हे देवानुप्रिय--इन्द्रोनो आचार छे ते कारण माटे तुं जा भने देवानंदा ब्राह्मणीनी कुक्षिमाथी भगवंत त्रिशला क्षत्रियाणीनी कुक्षिमा मुकी दे अने त्रिशलानो जे गर्भ छे तेना देवानंदानी कुक्षिमा मुकी दे।" __अर्थात्- इन्द्रने हरिणे मेषी देवको बुलाकर अपनी चिन्ता कह सुनाई और कहा कि हे देवानुप्रिय । इन्द्रका कर्तव्य (तीर्थकरके गर्भको उच्चकुलीन स्त्री के पेटमें पहुंचवाना ) है इस लिये तु जा और देवानंदा ब्राह्मणीके पेट में से भगवानको निकालकर त्रिशला क्षत्रियाणीके उदरमें रख आ तथा जो त्रिशलाका गर्भ है उसको देवानंदाके पेटमें रख आ ।
इन्द्रकी आज्ञा अनुसार हरिणेगमे षीदेवने भगवान महावीर स्वामीका गर्भ किस दिन परिवर्तन किया इस विषयमें कल्पसूत्रके २४ वें पृष्ठपर यों लिखा है
"ते समये श्रमण भगवंत महावीर वर्षाकाल संबंधी त्रीजा मासनु पाहमुं पखवाडीयुं जे आश्वीन मासन कृष्णपक्ष त्रयोदशीनो पक्ष पाछा लनो अर्घ अर्थात् रात्री एकंदर वाशी अहोरात्र अतिक्रान्त थया पछी त्राशीमा अहोरात्रनो अंतराकाल एटले रात्रिनो काल प्रवर्तता ते हरिणेगमेषी देवताए. त्रिशला मातानी कुक्षिमांते भगवंतनो गर्भ संठस्त्रो..........जे रात्रे श्रमण भगवंत महावीर देवानंदानी कुक्षिमाथी त्रिशलानी कुक्षिमांसं हारणथी आव्या ते रात्रे ते देवानंदाए पूर्वे कहेला चौद स्वप्नो त्रिशलाए हरी लीधेला जोया " ___यानी---उस समय श्रमण भगवान महावीर ८३ दिनके होगये ये वर्षाकाल संबन्धी तीसरा महीना या पांचवा पक्ष जो आसोज महीने
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