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असा परीषहों का सहन भी स्त्रियोंसे नहीं हो सकता | बाहुबलीके समान कठिन आतापन योग भी उनके शरीरसे नहीं बन सकता । इसलिये शुक्लध्यान पाकर उन्हें मुक्ति प्राप्त होना असंभव है ।
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स्त्रियां पुरुषों से हीन होती हैं.
पुरुषोंकी अपेक्षा स्त्रियां हीन होती हैं समान मोक्ष नहीं पा सकतीं । स्त्रियों में अपेक्षाओंसे है ।
इसलिये भी वे पुरुषोंके पुरुषोंसे हीनता अनेक
पुरुषोंसे वन्दनीय नहीं रहनेवाले पति पत्नी में से
प्रथम तो इसलिये कि वे समान पदधारी होत लोकमें देखा जाता है कि समान रूपमें पत्नी नमस्कार करने योग्य नहीं होती किन्तु पसि ( पत्मीके लिये ) वंदनीय होता है । इसीलिये स्त्री अपने पतिको नमस्कार करती है; पति अपनी पत्नीको नमस्कार नहीं करता I
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परमार्थ दृष्टि में भी पुरानी आर्यिका भी ( महाव्रतधारिणी ) नवीन मुनिको भी नमस्कार करती हैं । साधु वह चाहे एक दिनका दीक्षित ही क्यों न हो, पुरानी भी आर्यिकाको नमस्कार नहीं करता । कृतिकर्म कल्प का अभिप्राय स्पष्ट करते हुए कल्पसूत्र के दूसरे पृष्ठ पर लिखा हैसाध्वीभिव चिरदीक्षिताभिरपि नवदीक्षितो पि साधुरेव वन्द्यः प्रधानत्वात् पुरुषस्य इति । "
गु. टी. - " साध्वी कदि चिरकालनी दीक्षित होय तो पण तेनाथी नवो दीक्षित साधु वंद्य छे कारण के धर्मं पुरुषप्रधान छे । " अर्थात - साध्वी (आर्यिका ) बहुत समय पहले की दीक्षित भी हो तो भी उस साध्वी द्वारा नया दीक्षित साधु वंदनीय है क्योंकि धर्म में पुरुष प्रधान होता है।
महाव्रतधारी साधुओं में यह नियम होता है कि जो पुराने समय का दीक्षित मुनि होता हैं उसको उससे पीछे दीक्षा लेनेवाले साधु वंदनीय मानकर नमस्कार करते हैं । किंतु आर्यिका यदि पुराने समयकी भी दीक्षित
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