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तथा-यदि भोजन कर लेनेपर कुछ भोजन शेष रह जाय तो उसे क्या फिकवा देंगे? या किसीको खिला देंगे ? यदि फेंकवा देंगे तो उस भोजनमें सम्मूर्छन जीव उत्पन्न होंगे, हिंसाके साधन बनेंगे। यदि उस बचे हुए भोजनको कोई खालेगा तो उच्छिष्ट ( जूठा ) भोजन करानेका दृषण केवली को लगेगा।
सारांश:- यह है कि भोजन करानेपर केवली भगवान् मोही तथा दोषवाले अवश्य सिद्ध होंगे। इसी कारण गोम्मटसार कर्मकांड में कहा है
णहा य रायदोसा इंदियणाणं च केवलिस्स जदो । तेणदु सातासातज सुहदुक्खं गत्थि इंदियजं ॥ १२७ ॥
यानी-केवली भगवानके राग द्वेष तथा इंद्रियज्ञान नष्ट हो चुके हैं इस कारण साता वेदनीय तथा असाता वेदनीयके उदयसे होनेवाला इंद्रियजन्य सुख या दुःख केवलोके नहीं है ।
इस कारण मोहनीय कर्म बिलकुल नष्ट हो जानेसे भी केवली भग. वान् भोजन नहीं कर सकते हैं।
केवली भोजन करें भी क्यों ? मनुष्य भोजन मुख्यतया चार कारणोंसे करते हैं। १-भूख लगने से दुःख होता है उस दुःख को दूर करनेके लिये भोजन करना आवश्यक है। २-भोजन न करनेसे भूखके मारे बुद्धि कुछ काम नहीं करती है । ३- भोजन न करनेसे बल घट जाता है। ४-भोजन न करने से मृत्यु भी हो जाती है । इन चार कारणोंसे विवश (लाचार) होकर मनुष्य भोजन किया करते हैं।
किंतु केवली भगवान्में तो ये चारों ही कारण नहीं पाये जाते क्योंकि पहला कारण तो इस लिये उनके नहीं है कि उनके मोहनीय कर्मके अभावसे अनन्त सुख (अतीन्द्रिय सञ्चा ) प्रगट हो गया है इस कारण उनको किसी प्रकारका लेशमात्र भी दुख नहीं हो सकता। क्योंकि अनंत सुख वह है जिससे कि किसी तरहका जरा भी दुख न हो . फिर भूखका बडा भारी दुख तो उनके होवे ही क्यों ? और जन कि
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