________________
( २१ )
तथा - जब उन्हें केवलज्ञानसे यह बात मालूम हो कि मुझे भोजन अमुक घरका मिलेगा; फिर भिक्षाशुद्धि कैसे बनेगी एवं भोजन ग्रहण करने वे स्वयं जाते नहीं। दूसरों द्वारा लाये हुए भोजनको पालेते हैं । फिर उनके भिक्षाशुद्धि कैसे बने ? और भिक्षाशुद्धि के विना निर्दोष आहार कैसे हो ?
तथा - भोजन करते करते केवलीकी उदरपूर्ति को मन विना कौन बतलाने ९ केवरज्ञान तो सभी मनुष्योंके भोजन द्वारा पेट भरजानेको बतलाता है ।
मोहके बिना खाना पीना कैसे १६
मनुष्य अपने लिये कोई भी कार्य करता है वह विना मोहके नहीं करता है । यदि वह अपने किसी इस लोक परलोक संबंधी लाभके लिये कोई काम करता है तो वहां उसके राग भाव होते हैं । और जहाँ जान बूझकर अपने या दूसरोंके लिये कोई बुरा कार्य करता है तो वहां द्वेष भाव होता है । तदनुसार जिस समय वह अपनी भूख मिटाने के लिये भोजन करने को तयार होता है उस समय उसको अपने प्राणों से तथा उन प्राणोंकी रक्षा करने वाले उस भोजनसे राग (प्रेम) होता है । वह समझता है कि यदि मैं भोजन नहीं करूंगा तो मर जाऊंगा । इस कारण मरनेके भयसे भोजन करता है ।
केवलज्ञानी जिनको लेश मात्र भी मोह नहीं रहा है, राग द्वेष नड मूलसे दूर हो चुके हैं, उनके फिर भोजन करनेकी इच्छा किस प्रकार हो सकती है ? और विना इच्छाके अपने प्राण रक्षणार्थ भोजन भी वे कैसे कर सकते हैं ?
उन्हें अपने औदारिक शरीर रक्षाकी इच्छा तथा मरनेसे भय होगा तो वे भोजन करेंगे। विना इच्छाके भोजनसे हाथ क्यों लगावें ? भोजनका ग्रास ( कौर - कवल ) बनाकर मुखमें कैसे रक्खें ? विना इच्छाके उसे दांतों से चबानेका श्रम [ मिहनत ] तथा कष्ट क्यों करें ? और बिना -इच्छा के उस चबाये हुए मुखके भोजनको गलेके नीचे कैसे उतारें ? यानी - ये सब कार्य इच्छा-रागभाव से ही हो सकते हैं ।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com