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वर्षेमें आया था ) इस शब्दका व्यवहार किया है । यह शब्द [दिगम्बर वन्द ] बहुत योग्यताके साथ निर्ग्रन्योंको ही प्रगट करता
इसी प्रकार विकसन साहब ( H. H. Vilson M. A.) अपनी पुस्तक ) " Essoysand lectur's on religion of jains" में कहते हैं कि
जैनियों के प्रधान दो भेद हैं दिगम्बर भौर श्वेतांबर । दिगम्बरी बहुत प्राचीन मालूम होते हैं और बहुत अधिक फैले हुए हैं। सर्व दक्षिणके जैनी दिगम्बरी मालम होते हैं। यही हाल पश्चिमी भारतके बहुत जैनियोंका है। हिन्दुओंके प्राचीन धार्मिक ग्रंथोंमें नैनियोंको साधारणतासे दिगम्बर या नग्न लिखा है।
डाक्टर बोमेलने अपनी सन १९१० की रिपोर्टमें लिखा है कि
"अब मैं जैनियोंके २४ तीर्थकरोंकी मूर्तियों के विषयमें लिखता ई । मथुरामें जैनियोंका मुख्य कंकाली टीका है जहां डाक्टर फुरहरने बहुतसी मूर्तियां निकाली हैं जो लखनऊके अजायबघरमें हैं। तीर्थकरों की मूर्तियां पवित्र भारतीय कारीगरी है । इनके आसनोंपर जो शिला लेख हैं उनसे यह कुशान राज्यसे बहुत पहलेकी मालभ होती हैं। सबसे मसाधारण बात जो तीर्थकरोंकी मूर्तियों में है वह उनका नग्नपना है। इसी. चिन्हसे बौद्ध मूर्तियोंसे भिन्नता मालम हो जाती है। यह बात वास्तवमें दिगम्बरी मूर्तियोंके विषयमें ही कही जा सकती है। क्योकि श्वेताम्बरी अपनी मूर्तियोंको वस्त्र पहनाते हैं और उनको मुकुट तथा आभूषणोंसे सजाते हैं । मथुराके अजायबघरमें जो मूर्तियां हैं वे सव दिगम्बराम्नायकी ही हैं।"
मथुराके कंकाली टीलेसे निकली हुई उक्त प्राचीन प्रतिमाओंके विषयमें श्वेताम्बरी सज्जनोंका कहना है कि डाक्टर फरहर के कथनानुसार ये समस्त प्रतिमाएं श्वेताम्बरीय हैं अतः हमारा श्वेताम्बर सम्प्रदाय दिगम्बर सम्प्रदायसे प्राचीन है । ऐसा ही श्वेताम्बर मनि मात्मानंदनीने अपने " तत्वनिर्णयपासाद " ग्रंथमें लिखा भी है।
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