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कि पिता बौद्ध धर्मावलम्बी था और श्वसुन्घर जैन धर्मावलम्बी था तथा वह स्वयं बौद्ध साधुओंमें भक्तिभाव रखती थी।।
श्रावस्ती नगरमें अपने श्वसुर [मिगार सेठ] के घर पहुंचनेपर विशाखा को एक दिन ऐसा अवसर मिला कि उसके श्वसुरने अपने घर ५.. निग्रंथ साधुओंको भोजनार्थ आमंत्रित किया । तदनन्तर उस सेठने विशाखासे उन साधुओंके चरणोंपर प्रणाम करनेको कहा। विशाखा निग्रंथ साधुओंका नग्न रूप देखकर भाग आई और उसने कहा कि ऐसे निर्लज नग्न पुरुष साधु नहीं हो सकते।..............जब नम निग्रंथोंने यह जाना कि बुद्ध भिगार सेठीके घरमें मौजूद है तब उन्होंने उसके घरको घेर लिया। विशाखाने अपने श्वसुरसे बुद्धका सत्कार करनेको कहा । नग्न निर्ग्रन्थोंने सेठकों वहां जानेसे रोका । ___ सुमागधा अवादानमें लिखा है किमनार्थापण्डककी पुत्रीके घरमें बहुतसे नग्न साधु एकत्रित हुए इत्यादि.
इस प्रकार पिटकत्रयादि अनेक प्राचीन बौद्धशास्त्रोंमें निर्मन्य जैनसाधुओंके नग्न वेशका उल्लेख है । महात्मा बुद्धके समयमें भी जबतक कि भगवान महावीर स्वामीको केवलज्ञान नहीं हुमा था अतएव वे धर्मोपदेश भी नहीं देते थे ( क्योंकि तीर्थकर सर्वज्ञ होनेके पहले उपदेश नहीं देते हैं ऐसा नियम है ) नग्न जैन साधु पाये जाते थे । इससे यह यह स्वतः सिद्ध हो जाती है कि श्री पार्श्वनाथ भगवानके उपदेश प्राप्त उनकी शिष्यपरम्परा के साधु भी नग्न ही होते थे। इस कारण श्रेताम्बरीय ग्रंथों का यह कथन असत्य तथा निराधार प्रमाणित होता है कि श्री पार्श्वनाथ तीर्थकरकी शिष्यपरम्पराके महाव्रतधारी साधु वक्ष पहनते थे।
वॉरनफ साहिबका मत है कि जैनसाधु ही नग्न होते थे और बुद्ध नग्नताको आवश्यक नही समझते थे।
श्री सम्मेदशिखर तीर्थक्षेत्रके इंजकशन केसका फैसला देते हुए रांची कोर्टके प्रतिभाशाली प्रख्यात सब जज्ज श्रीयुत फणीन्द्रलाल जी सेन लिखते हैं कि,
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