________________
( २१२ ।
यटावाठी पनाडिनगरं पवेस.......राजसेय सदसणतो सबकरावणं अनुगहअनेकानि सतसहसानि विसजति पोरजानपदं ।
गारोंसे सर्व राष्ट्रके सरदारोंको मानो रत्नत्रय [ सम्यग्दर्शन, सम्याज्ञान, सम्यक्चारित्र ] की श्रद्धा प्रदर्शित की । पांचवें वर्ष नंदराजाका त्रिवर्ष सत्र [ तीन वर्ष तक चलनेवाली दानशाला अथवा तालाब ] उद्घाटित किया । तनसुलियाके मार्गसे एक नहर नगरमें प्रवेश कराई । राज ऐश्वर्य दिखलानेके लिये उत्सव किया । नगर गांव निवासिनी जनतापर लाखों उपकार किये ।..........
७-८-सतमं च बसं पसासतोच....सवोतुकुल...अठमे च वसे...घातापयिता राजगहनपं पीडापयति एतिनं च कमपदानप. नादेनसबत सेनवाहने विपमुचितु मधुरं अपयातो । ___अर्थात्-आठवें वर्षमें मार द्वारा राजगृहीके राजाको पीडा पहुंचाई । इसके ( खार बेलके ) चरणप्रवेशके शब्दसे वह ( राजगृहीका राजा ) अपनी सेना, सवारीको छोडकर मथुरा भाग गया।
९-नवमे च......पवरको कपरुखो हयगजरथसह यतसवं धरावसध......यसबागहनं च कारयितुं बमणानं रढिसारं ददाति अरजमि....( निवा) सं महाविजयपासादं कारयति अठतिससतसहसेहि। ___ यानी-नौवें वर्ष....एक बहुत सुंदर अहंत भगवानका ....निवास महाविजय नामक मंदिर ३८ लाख मुद्राओंसे रुपयोंसे] बनवाया और कल्पवृक्ष घोरे हाथी रथोंके साथ तथा हावसर्यो ....... जिसका ग्रहण करानेमें ब्राह्मणों को बहुत ऋद्धि दी।
१०-११-दसमे च वसे.. भारधवसपठान........"कारापयति....."डयतानं च मनोरधानि उपलभता......'ल पुवराजनिवेसितं पाथुडं गदंभनगले नकासयति जनपदभावनं च तेरसवससताक... दमामरदेहसंघातं ।
भावार्थः-दशवें वर्ष में ... ....( खारवेलराजा ) भारतवर्षकी यात्राको निकला । ....... बनवाया........ जो तयार थे उनके मनोरथको
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com