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शिलालेख ७
(९ वीं शताब्दी) भद्रमस्तु जिनशासनाय । अनवरत...अखिलसुरासुर नरपति मौलिमाला... चरणारविन्द युगल सकल श्रीराज्य युवराज्य भद्रबाहु चन्द्रगुप्तमुनिपतिमुद्रणाकित विशाल...मान जगल ललामायित श्री कलवप्पु तीर्थसनाथ वेलगुलनिवासि....अव (म) णसंघ स्याद्वादाधार भूतरप्पा श्रीमत्स्वस्ति सत्यवाक्योङ्गुणि वर्मा धर्म महाराजाधिराजकु बलाल पुरवरेश्वर नन्दि गिरिनाथ स्वाति समस्त भुवनविनुतगङ्गकुलगगननिर्मलतारापतिजलधि जलविपुलविलयमेखलाकलापालङ्कृतैलाधिपत्य लक्ष्मी स्वयम्वृत पतिवध अगणितगुणगणभूषणभूषितविभूति श्रीमत्परमानदिगळु येरेयप्पसरं इलुचगि परमनदि गल कलावसाद आय्यरप्पा परपिङ्गे कुमारसेन भट्टारकपदे स्थितिविलय अकियं सोल्लगेय विट्टिउनट्टपर मन यल्लाकलकम सर्वबाधा परिहरं मागे विदिसिदार इदनलिड अडोनं कोंडन पशुवं परवरं केरेयं अयं बर्नासियुन अलिडं पञ्च महापातकं ।
देवस्व तु विषं घोरं न विषं विषमुच्यते । विषमेकाकिनं हन्ति देवस्वं पुत्रपौत्रकं ॥ यह शिलालेख क्यातनहल्ली ग्रामके दक्षिणभागमें जो वस्ती है वहांपर है।
तात्पर्य जैनधर्नका कल्याण हो । समस्त देव राक्षस तथा राना लोगोंके मस्तक झुकानेसे मुकुटमणिकी चमकसे प्रकाशमय चरणकमलवाने श्री भद्रबाहु स्वामीको नमस्कार करो । मोक्षराज्यके युवराज, स्याद्वादके संरक्षक, बेलगुलस्थ श्रमणसंघके अधिपति अपने चरणकमलसे जगद्भूषण कटवा पर्वतको पवित्र करनेवाले श्रीमान् भद्रबाहु स्वामी और चन्द्रगुप्तमुनि हमारा संरक्षण करें । गजराजकुलाकाशके निष्कलंक चन्द्रमा
और कुवलयपुर तथा नन्दगिरिके स्वामी श्रीसत्यवाकोङ्गुणि वर्मा धर्ममहाराजाधिराजकी स्तुति समस्त संसारने की है। समुद्रमेखलासे परिवेष्टित तथा पृथ्वीके स्वयम्बरित पति सकलगुणविभूषित श्री परमानदि
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