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वर्ष का भयानक दुर्भिक्ष पड़ने वाला है जिसमें लोगोंको अन्न का कण मिलना भी दुर्लभ हो जायगा । उस भयानक समयमें पात्रदान आदि शुभकार्य बंद हो जावेंगे । उस समय इस देशमें मुनिसंघका विहार असंभव हो जावेगा। अत एव जब तक यहां दुर्भिक्ष रहे तब तक कर्णाटक आदि दक्षिणदेशोंमें विहार करना चाहिये । भद्रबाहु स्वामीकी आज्ञा समस्त मुनिसंघने स्वीकार की।
जब यह पात उज्जैनके श्रावकोंने सुनी तब वे सब मिलकर संघके अधिपति श्री भद्रबाहु स्वामीके पास आये और भाकर प्रार्थना करने लगे कि महाराज ! आप मालव देशमें ही विहार कीजिये, दक्षिण देशकी ओर न जाइये। ___भद्रबाहु स्वामीने कहा कि श्रावक लोगो ! तुम्हारा कहना ठीक है, किन्तु यहांपर १२ वर्षतक धोर दुष्काल रहेगा जिसमें लोगोंको एक दाना भी खानेको न मिलेगा । उस भयानक समयमें इस देशके भीतर मुनिधर्मका पलना असंभव हो जायगा ।
तब कुबेरमित्र, जिनदास, माधवदत्त. बन्धुदत्त सेठोंने क्रमसे कहा कि महाराज ! भापके भनुग्रहसे हमारे पास पर्याप्त धन धान्य है। यदि इस नगरके समस्त मनुष्य भी १२ वर्ष तक हमारे यहां भोजन करते रहें तो भी हमारे भंडारका अन्न समाप्त नहीं हो सकेगा। इस इस कारण दुर्मिक्ष कितना ही भयानक क्यों न हो, हम अपने भंडारोंको खोलकर दुष्कालका प्रभाव इस उज्जैन नगरमें रंचमात्र भी नहीं पढने देंगे।
भद्रबाहु भाचार्यने कहा कि तुम लोगोंकी उदारता ठीक है । धन धान्यका उपयोग परोपकारकेलिये ही होना सफल है, उत्तम कार्य है। किन्तु निमित्त यह स्पष्ट बतला रहे हैं कि इस देशके व्यापक दुर्भिक्षकी भयानक, न सह सकने योग्य दुर्दशाको कोई भी किसी प्रकार भी नहीं मिटा सकेगा। इस कारण मुनिधमकी रक्षा होना यहांपर भसंभव है।
भद्रबाहुस्वामीका ऐसा दृढ निश्चय देखकर श्रावक लोग राजमल्य, स्थूलभद्र, स्थूलाचार्य के समीप गये और उनसे भी बहुत विनयपूर्वक पा
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