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हां यह हो सकता है कि गत दो वर्ष पहले श्वेताम्बर जैन पत्र में हेमचन्द्राचार्यका जो जीवनचरित प्रकाशित हुआ था उसके लिखे अनुसार जिस राजसभा में शास्त्रार्थ हुआ था वहांके राजमंत्री, सदस्य तथा स्वयं राजातक देवसूरिके भक्त थे । तथा हेमचन्द्राचार्यने रानीको भी 'कुमुद - चन्द्राचार्य स्त्रियोंको मुक्ति होना निषेध करते हैं ऐसी बातों द्वारा वहकाकर कुमुदचन्द्राचार्य के विरुद्ध कर दिया था । इस प्रकार समस्त उपस्थित जनता एक देवसूरिके पक्ष में थी । वहाँपर यदि हुल्लडबाजी के नामपर कुमुदचन्द्राचार्यकी पराजय कह दी गई हो तो अन्य बात है । वास्तव - विद्वत्ता तथा अखंड युक्ति जालसे कुमुदचन्द्राचार्य पराजित नहीं हुए यह समस्त उपलब्ध सामग्री से सिद्ध होता है ।
साहित्य विषयकी नकल.
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हम इस विषयपर प्रकाश डालते हैं कि साहित्य ग्रंथों की रचनांमें भी re saarम्बरीय ग्रंथकारोंने दिगम्बरीय ग्रंथोंकी छाया ली है इस कारण साहित्य विषयमें भी श्वेताम्बरीय ग्रंथ दिगम्बरीय साहित्य ग्रंथों से अधिक महत्व नहीं रखते । इस विषयको सिद्ध करनेके लिये हम केवल एक साहित्य ग्रंथका नमुना पाठक महाशयोंके सामने रक्खेंगे ।
श्वेताम्बर सम्प्रदाय में हेमचन्द्राचार्य एक अच्छे प्रभावशाली विद्वान हो गये हैं । उन सरीखा कोई अन्य विद्वान कलिकाल में नहीं हुआ ऐसा सब श्वेताम्बरी भाई मुक्तकंठ से कहते हैं । इसी कारण इनको कलिकाल सर्वज्ञ ' भी श्वेताम्बरी भाई कहते हैं । ये हेमचन्द्राचार्य प्रमाणनयतत्वालोकालंकार ग्रंथके रचयिता देवसूरि के समकालीन बारहवीं विक्रम शताब्दी में हुए हैं। इन्होंने न्याय व्याकरण, साहित्य, कोष आदि अनेक ग्रंथ बनाये हैं ।
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उन्हीं ग्रंथोंमें से उन्होंने 'काव्यानुशासन' नामक एक साहित्य ग्रंथ भी लिखा है । ग्रंथ यद्यपि अपने विषयका एक अच्छा ग्रंथ है किंतु इसमें भी सन्देह नहीं कि यह ग्रंथ दिगम्बरीय महाकवि वाग्भट विरचित काव्यानुशासन ग्रंथकी खासी नकल है | महाकवि
वाग्भट
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