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तथा - अठारह दोषों में भूख, प्यास, रोग आदि दोषोंकी उद्भूति मननेके कारण श्वेतांबर, स्थानकवासी संप्रदायके माने हुए अर्हत भगवान के अनंतसुख, अनंतबल नहीं हो सकते हैं । इनको आगे सिद्ध करेंगे इस कारण १८ दोषोंका म्बरीय सिद्धान्त ठीक नहीं बनता है ।
श्वेतां
अर्हन्त भगवान में अनन्त चतुष्टयके सद्भाव और अठारह दोषोंके सर्वज्ञता और हितोपदेशकता
अभाव होने से वीतरागता, प्रगट होती है ।
यानी- अर्हन्त भगवान् राग, द्वेष, मोह, आदि दोष न रहनेक करण वीतराग कहलाते हैं । तदनुसार वे किसी पदार्थपर राग, द्वेष यानी प्रेम और वैर नहीं करते हैं । केवलज्ञान हो जाने से वे समस्त लोक, समस्त कालकी सब बातोंको एक साथ स्पष्ट जानते हैं इस कारण वे सर्वज्ञ कहलाते हैं । और इच्छा न रहनेपर भी वचन - योगके कारण तथा भव्यजीवोंके पुण्य कर्मों के निमित्तसे उन जीवों को कल्याण करनेवाला उपदेश देते हैं इस कारण हितोपदेशी कहलाते हैं ।
ये तीनों बातें दिगम्बरीय अभिमत अर्हन्त में तो बन जाती हैं किन्तु श्वेताम्बर सम्प्रदायानुसार अर्हन्त भगवान में वीतरागता तथा सर्वज्ञता नहीं बनती है । सो आगे दिखलावेंगे |
इस प्रकार अर्हन्तदेवका ठीक-सच्चा स्वरूप दिगम्बर सम्प्र दायके सिद्धान्त अनुमार तो ठीक बन जाता है किन्तु श्वेताम्बर, स्थानकवासी सम्प्रदाय के सिद्धान्त अनुसार अर्हन्तदेवका सच्चा स्वरूप ठीक नहीं बनता ।
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क्या केवली कवलाहार करते हैं ?
अब यहां इस विषयपर विचार चलता है कि अर्हन्त भगवान् जो कि मोहनीय कर्मका समूल नाश करके वीतराग हो चुके हैं, केवलज्ञान हो जानेसे जिनको केवली भी कहते हैं कवलाहार ( हमारे तुम्हारे समान प्रासवाला भोजन ) करते हैं या नहीं !
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