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श्रीजिनदेवाय नमः । श्वेताम्बर मत समीक्षा.
. देव वंदना. तज रागद्वेष क्षुधा तुषादिक ध्यानसे खल कर्म हन, . अर्हन्तपद पाया अतुल जो अरु अनन्त सुशर्मधन । वैराग्य रससे पूर्ण केवलज्ञानयुत अभिराम है, उस अजितवीर जिनशको मम वार वार प्रणाम है ॥ १॥
शारदाविनय. सब युक्तियोंसे जो अखंडित दयाधर्म प्ररूपिणी, पूर्वपर अविरोधभूषित सर्व तत्व निरूपिणी। संसारभ्रांत सुभव्य जनको दे सदा शुभ धाम है, उस वीरवाणी शारदाको वार वार प्रणाम है ॥ २ ॥
गुरुस्तवन. संसार व्याधि उपाधि सब आमूल से जो त्याग कर, निज आत्ममें लवलीन रहते श्रेय समता भाव धर । लवलेश भी जिनके परिग्रह का नहीं संघर्ष है, वो ही दिगम्बर वीतरागी पूज्य गुरु आदर्श है ॥ ३ ॥
आचार्य श्री शान्तिसागर. उत्कुष्ट तप चारित्र धारी ज्ञानसिन्धुि अगाध हैं, मुनिरत्न जिनके शिष्य निरुपधि वीरसागर आदि हैं। भवसिन्धुतारक तमनिवारक शान्तिके आगार हैं, आचार्यवर श्रीशान्तिसागर धर्मके पतवार हैं ॥ ४ ॥
. उद्देश. सत असत निर्णयहेतु इस सग्रंथका प्रारंभ है, निंदा प्रशंसासे न मतलब, नहीं द्वेष रु दम है।
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