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३-कपडोंमें मक्खी, मच्छर, जू. चींटी, कुंथु, खटमल आदि छोटे छोटे नीवजंतु आकर रह जाते हैं उनका शोधन प्रत्येक समय कपडा उतार उतारकर देखनेसे बनता है जो कि हो नहीं सकता। इस कारण बैठते, सोते, वस्त्र बांधते, सुखात आदि समय साधुसे उन जीवोंका घात हो सकता है।
४-कपडेपर यदि अपना या दूसरे जीवका रक्त ( लोह ) विष्टा, मूत्र आदि लग जाय तो उसको साधु अवश्य घोकर आरंभ करेगा अन्यथा देखनेवालोंको ग्लानि होगी।
५-यदि वस्त्र फट जाय तो मुनिके मनमें खेद उपजे । और या तो उस वस्त्रको उसी समय सी लेवे अन्यथा आने जानेमें लज्जा उत्पन्न होगी।
६-यदि साधुका कपडा कोई चोर चुरा ले जावे तो साधको दुःख, क्रोध होगा तथा नंगे आने जानेमें भी असमर्थ होनेसे उसको रुकावट होगी। .: ७-एकान्त स्थान वन, गुफा, पर्वत, कंदरा, मैदान, सूने मकान आदि स्थानों में रहते समय साधुके मनमें भय रहेगा कि कहीं कोई चोर, डाकू, भील मेरे कपडे न लूट ले जावे । इस भयसे अपने भापको या अपने कपडोंको छिपा रखनेका प्रयत्न ( कोशिश ) साधुको करना होगा।
८-ध्यान करते समय कपडा वायु ( हवा ) से हलै, चलै, उडे तब साधुका मन ध्यानसे चिग ( चलायमान हो ) सकता है। . ९. वर्षा ऋतुमें कपडे भीग जाने पर मनमें साधुको खेद पैदा होगा और उन कपड़ों के निचोंडनं सुखानेसे पानीके रहने वाले त्रस जीवोंकी तथा स्थावर जीवों की हिंसा अवश्य होगी जिससे कि संय. मका नाश होगा।
१. शीत ऋतुमें गर्म मोटे कपडकी तथा गर्मी ऋतु पतले ठंडे कपडे की इच्छा होती है। यदि वैसा कपडा मिल गया तब तो ठीक अन्यथा मुनिके मनमें खेद होगा ।
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