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भगवान महावीरको जिम रात्रिके अन्तिम समयमें इस पौद्गलिक शरीर बन्धनको तोडकर मुक्ति प्राप्त होनी थी उस दिन महावीर स्वामीने यह विचार कर कि मेरी मुक्ति हो जानेपर मेरे वियोगके कारण गौतम गणधरको बहुत दुख होगा, यदि मेरे पास उस समय न होगा तो इसको उतना दुख न होगा, गौतम गणधरको देवशर्माको उपदेश देनेके लिये भेज दिया।
इस बातको कल्पसूत्रमें ८४ वें पृष्ठपर यों लिखा है
"जे रात्रिए प्रभु निर्वाण पदने पाम्या ते रात्रिर प्रभुनी नजदीकमा रहेता एवा गौतम गोत्रनां इन्द्रभूति नामनां मोटा शिष्यने स्नेहबंधन त्रुटते छते केवलज्ञान अने केवल दर्शन उत्पन्न थयां । तेनो वृत्तान्त नीचे प्रमाणे जाणवो । प्रभुए पोतानां निर्वाण वखते गौतम स्वामिने कोइक गाममां देवशर्माने प्रतिबोधवावास्ते मोकल्या हता । तेने प्रतिबोधने पाछा बलतां श्री गौतम स्वामिए वीर प्रभुनुं निर्वाण सांभल्युं अने तेथी जाणे वज्रथीज हणाया होय नहीं तेम क्षणवारसुधि मौनपणाने धारण करीने रह्या ।" __अर्थात्-जिस रातको भगवान महावीरने मुक्तिपद प्राप्त किया उस रातको भगवान के समीप रहनेवाले गौतम गोत्रधारी इंद्रभूति नामक बडे शिष्यका प्रेमबंधन टूटते ही भगवान्को केवलज्ञान और केवलदर्शन उत्पन्न हुआ। उसका प्रसंग इस प्रकार है-भगवान महावीर स्वामीने अपने मुक्तिगमनके समय गौतम गणधरको किसी एक गांवमें देवशर्मा नामक गृहस्थ को प्रतिबोध देनेकेलिये (धर्म पालनमें तत्पर करनेकेलिये) भेज दिया था। देवशर्माको उपदेश देकर लौटकर आते हुए गौतमस्वामीने श्री महावीर स्वामीकं मुक्त हो जाने की बात सुनी। सुनकर गौतम स्वामी कुछ देर तक वज्रसे आहत ( घायल ) के समान मौन धार कर रहे ।
कल्पसूत्रके इस कथनमें प्रथम तो केवलज्ञान उत्पन्न होनेकी बात गोटी भूल भरी है कि भगवान महावीर स्वामीको जिस रात्रिके अंतिम पहरमें मुक्ति प्राप्त हुई थी उसी रात्रिको केवलज्ञान, केवलदर्शन उत्पन्न नहीं हुमा था किन्तु उससे ३० वर्ष पहले दीक्षा ग्रहण करने के १२
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