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000000000000000000000000000000 * श्रावक करणी वही पालकर, स्वर्ग बारवें जाता है। इस करणीको नहीं मानकर, समकित बीज जलाया है, ऐसे देखो अजब मजबने जगमें गजब मचाया है।
७४ पतिमाका आकार देख कर, और मच्छ भी बूझे हैं, __ समकित पाकर जातिस्मरणसे, पूर्वभवोंको पेखे हैं । तिसपर मानें नहीं, जिन्होंने सच्चा अर्थ ऐसे देखो अजब मजबने जगमें गजब मचाया है ।।
७५ Q अंग पांचवेंमें गणधरने, ब्राह्मी लिपिको वांदी है,
फिर भी प्रतिमाके निंदकने, पूरी निंदा ठोकी है। () सुनो कुतोंको भी इसके, जिनसे जग भरमाया है,
ऐसे देखो अजब मजबने जगमें गजब मचाया है ।
कहें कुपंथी, "पत्थरकी गौ क्या हमको पय देती है ?
इसी तरहसे पत्थरकी प्रतिमा न हमें कुछ देती है"। कहा खूब, अक्कलका परिचय अपने आप कराया है,
ऐसे देखो अजब मजबने जगमें गजब मचाया है ।
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पत्थरकी गौसे क्या हमको गौका ज्ञान न होता है ?
ऐसे ही जिनप्रतिमासे, जिनका उदबोधन होता है ।
। भगवतीसूत्र । २ तीर्थकरका । 3 ज्ञान । 0000000000000000000000000000
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