SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ढूंढक कुंदनमलजीका पुकार. (३५) ॥राग. भुंडीरे भूख अभागणी लालरे. एदेशी ॥ १मच्यो हुलर इन लोकमें, खोटो हलाहल धार लालरे । सांच नहीं रंच तेहमें,मिथ्यात्वी कियो पोकार लालरे । मच्यो ।।१।। कुंदन मुनि, राजमुनि, निंदक जिन प्रतिमाका होय लालरे । तेपिण ठिकाणे आविया,लीजो पित्रिका जोय लालरे । मच्यो ॥२॥ ? यह स्तवन उत्पत्ति होनेका कारण यह है कि-नागपुरपासें-हिंगनघाट गाममें, मंदिरकी प्रतिष्टामें, दोनोपक्ष सामिलथें कंकु पत्रिका-संवेगी सुमतिसागरजीका, तथा मणिसागरजीकानाम, दाखल कियाथा॥ इस ढूंढकने-खटपट करके, अपना-नाम भी,दाखल करवाया। तब जैन पत्रमें, इस ढूंढककी-स्तुति, कीई गईथी, ते बदल कपीला दासीका, अनुकरण करके, यह पुकार किया है | ___ और एक अप्रासंगिक व्यवहारिक विचारको समजे बिना उ. समें अपनी पंडिताई दिखाई है ? ऐसे विचार शून्योको हम वारंवार क्या जुबाप देवें ? जो उनको समज होगी तब तो यह हमारा एकही ग्रंथ बस है ? ॥ ॥ इस ढूंढकने पृष्ट-१३ में लिखा है कि, मुनी या श्रावक म. त्यक्ष मरणकी पर्वा न करके अन्यमतके धर्मका, देवका, गुरुका, व तीर्थका, शरण कदापि नहीं करेंगे, और नहीं श्रद्धंगे । इसमें कहनेका इतना ही है कि, ढूंढन जी तो-वीर भगवानके, परम श्रावकोकी पाससे भी-पितर, दादेयां, भूतादिकोकी-मूर्ति, दररोज पूजानेको, तत्पर हुई है । हमारे ढूंढक भाईयांका ते मत किस प्रकारका समजना ? ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034587
Book TitlePratima Mandan Stavan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarvijay
PublisherChunilal Chagandas Shah
Publication Year
Total Pages42
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy