SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 32
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१२) तीर्थकरादिकनिंदक, माधव ढूंढक. विपत कालमें वेश बदल इन,मांग मांग कर खायोरी. अ० ॥१२॥ पडी कुरीत कहो किम छुटे, पक्षपात प्रगटायोरी. अ० ॥१३॥ क्या अचरजकी बात अलीये,काल महातम छायोरी. अ०॥१४॥ स्यान मुमति संवाद सुगुरु मुनि,मगन पसायें गायोरी. अ० ॥१५।। ॥ इति ।। ॥ पुनः॥ तीन खंडको नायक ताको, रूप बनायें जाली है। देखो पंचम काल कलूकी, महिमां अजब निराली है. ॥ टेर ।। पामर नीच अधम जन आगे, नाचें दे दे ताली है. दे०॥ २ ॥ पदमा पतिको रूप धारके, मागें फेरै थाली है. . दे० ॥ ३ ॥ बने मात पितु जिनजीके, ये बात अचंभे वाली है. दे० ॥ ४ ॥ जंबूरुप बनाके नांचे, कैसी पडी प्रनाली है. दे॥५॥ - इत्यादिक निंदाकी पोथी विक्रम संवत्. १९६५ में आगरे वालोने छपाई है ॥ १ प्रथम देख आजीविका त्रुटनेसें विपत्तिमें आके- लोंकाशा बनीयेने, मांग मांगके खाया ? ॥ पिछे गुरुजीके साथ लडाइ हो जानेसें-विपत्तिमें आके, लवजी ढूंढकने-मांग मांगके खाना सरु किया । तुम लोक भी गप्पां सप्पा मारके, उनोंका ही अनुकरण कर रहे हो ? दूसरोंको जूठा दूषण क्यों देते हो ? ॥ . २ तीर्थकर भगवानके वैरी होके--पितर, भूत, यक्षादिकोंकी प्रतिमाको पूजाने वाले.--नीच, अधम, कहे जावेंगे कि---तीर्थकरोंके भक्त ? उसका थोडासा विचार करो ॥ . Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034587
Book TitlePratima Mandan Stavan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarvijay
PublisherChunilal Chagandas Shah
Publication Year
Total Pages42
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy