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________________ जिनमातिमा स्थापन प्रथम स्तवन. (३) . ॥ अथ श्रीमद्यशोविजयीकृत ढूंढकशिक्षा ॥ जिन, जिन प्रतिमा,वंदन दीसइ, 'समकितनइ आलावइ । अंग उपासके प्रगट अरथए, मूरख मनमां नावहरे ॥ कुमती का प्रतिमा जथापी, इपतें शुभ मातका पीरे, कुमती. मारग लोपे पापीरे, कुमती का प्रतिमा ऊथापी १॥ एह अरथ 'अवडं अधिकारें, जूमो उमंग ऊबाइ । ए समकितनो मारग मरडी, कहइ दया सी माईरे । कु. । २ ॥ समकित विन सुर दुर गति पाम्यो, अरस विरस आहारी। जूओ जमाली दयाई न तर्यो, हूओ बहुल संसारीरे । कु. । ३ ॥ चारण मुनि जिन प्रतिमा वंदइ, भाषिउं भगवई अंगे । चैत्यसापि आलोयणा भाषी, व्यवहारे मनरंगरे । कु. । ४ ॥ प्रतिमानति फल काउस्सग्गिं, आवश्यकमां भाषिउं। चैत्य अरथ वेयावच मुनिनि, दसमइ अंगिं दाखिउंरे । कु.। ५॥ सूरयाम सुरें प्रतिमा पूजी राय पसेणी मांहिं । समाकित बिन भवजलमां पडतां, दया न साहइ बाहिरे । कु.। ६॥ 'द्रौपदीइं जिन प्रतिमा पूजी, छठइ अंगि वाचइ । तोस्युं एक दया पोकारी, आणाविन तूं माचईरे । कु. ७ ॥ एक जिन प्रतिमा वंदन द्वेषि, सूत्र घणां तूं लोपइं । नंदीमा जे आगम संख्या, ते आप मति का गोपइरे । कु. ८॥ "जिनपूजा फल दानादिक सम, - १॥ अरिहंत चेइयाइं, पाठ, आनंदादिक श्रावकोंका समकितके आलावेमें आता है। देखो नेत्रांजन १ भाग पृष्ट. १०८ में ॥ २ अंबडजीमें भी यही पाठ है । देखो नेत्रांजन १ भाग. पृष्ट. १०४ से ८ तक ॥ ३ नेत्रांजन १ भाग. पृष्ट. ११७ से १२१ तक ।। "४ नेत्रांजन १ भाग. पृष्ट ११० से ११४ तक ।। ५ नेत्रांजन १ भाग. पृष्ट. १३२ से १३३ तक ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034587
Book TitlePratima Mandan Stavan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarvijay
PublisherChunilal Chagandas Shah
Publication Year
Total Pages42
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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