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________________ संप्रति राजाका-७स्तवन. (१३) धर्म तणा आधार आरोपी, त्रिनग हुओ विख्यात रे ॥ धन. ४ सवालाख प्रासाद कराव्या, छत्रीश सहस्स उद्धार रे। सवाकोडी संख्याये प्रतिमा,धातु पंचाणुं हजार रे॥ धन. एक प्रासाद नवो नीत नीपजे, तो मुख शुद्धिज होय रे। एह अभिग्रह संमति कीधो, उत्तम करणी जोय रे॥ धन. ६ आर्य सुहस्ति गुरु उपदेशे, श्रावकनो आचार रे।। समकित मूल बार व्रत पाली, कीधो जग उपगार रे ॥ धन. ७ मिन शासन उद्योत करीने, पाली त्रण खंड राज रे। . ए संसार असार जाणीने, साध्या आतम काज रे ॥ धन. ८ गंगाणी नयरीमा प्रगट्या, श्रीपद्मप्रभ देव रे । विबुध कानजी शिष्य कनकने, देज्यो तुम पय सेव रे ॥ धन. ९ ॥ इति श्री संपति राजाका ६ स्तवन संपूर्ण ॥ ॥ अथ जिन प्रतिमाके उपर ७ स्तवन । चोपाई ॥ जेहने जिनवरनो नही जाप, तेंहनुं पासु न मेलें पाप। जेहने जिनवर सुं नही रंग, तेहनो कदी न कीजे संग ॥ जेहने नही वाहाला वीतराग, ते मुक्तिनो न लहे ताग । जेहने भगवंत सुं नही भाव, तेहनी कुण सांभलशे राव ॥ जेहने प्रतिमा शुं नहीं प्रेम, तेहगें मुखडं जोइये केम । जेहने प्रतिमा शुं नही प्रीत, ते तो पामें नहीं समकित ।। जेहने प्रतिमा शुं छे वेर, तेहनी कहो शी थासें पेर । जेहने जिनमतिमा नहीं पूज्य,आगम बोले तेह अबूज्य ॥ ४ १नाम, २स्थापना, ३द्रव्य, ने ४भाव, प्रभुने पूजो सही प्रस्ताव । जे नर पूजे जिननां बिंब, ते लहे अविचल पद अविलंब ॥ ५ ०९ सा पास पर। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034587
Book TitlePratima Mandan Stavan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarvijay
PublisherChunilal Chagandas Shah
Publication Year
Total Pages42
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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