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प्राचीन तिब्बत मिल सकी। निराश होकर नरोपा फिर तिलोपा को खोजने चल पड़ा। कई बार ऐसा हुआ कि जहाँ वह जाता वहीं पता चलता कि यहाँ तिलोपा था नो अवश्य, पर अभी-अभी पता नहीं कहाँ चला गया । __बहुत सम्भव है कि नरोपा की जीवनी लिखनेवालों ने उसकी इस यात्रा के वर्णन में बहुत कुछ अपनी ओर से बढ़ाकर लिख मारा हो, लेकिन इसमें कोई सन्देह नहीं कि ये वर्णन काको दिल
चस्प हैं और इनका कुछ मतलब भी है। ____ कभी-कभी रास्ते में नरोपा की अजीब-अजीब तरह के लोगों से भेंट हो जाती थी जो और कुछ नहीं तिलोपा की माया मात्र थे। एक बार एक घर का द्वार खोलकर एक आदमी निकला और उसने अन्न के बजाय उसके पात्र में मदिरा उँडेलनी शुरू कर दी। नरोपा क्रोध में वहाँ से चल दिया। उसके पीठ फेरते ही घर और घर के मालिक दोनों लुप्त हो गये। अभिमानी ब्राह्मण अपने पथ पर अकेला खड़ा रह गया। इतने में एक ओर से हँसने को आवाज़ आई और किसी ने कहा-वह आदमी मैं था मैं, "तिलोपा"।
दूसरे दिन एक देहाती आदमी ने नरोपा को पुकारकर रोका और एक जानवर की खाल निकालने के काम में उससे मदद करने को कहा। नरोपा नाक-भौं सिकोड़कर छिटककर दूर जा खड़ा हुआ और एक बार फिर मायावी तिलोपा की आवाज आई, "वह आदमी मैं था।" ___ और भी--रास्ते में नरोपा एक आदमी को अपनी स्त्री को बाल पकड़कर निर्दयतापूर्वक घसीटते हुए देखता है। उसके बाधा देने पर वह निष्ठुर पुरुष उससे कहता है-"यह औरत बड़ी पाजी है। मैं इसकी जान लेकर हा छोड़ेगा। तुम इस काम में मेरी सहायता करो और नहीं तो चुपचाप अपना रास्ता लो, मुझे रोको
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