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उपसंहार
मेरा मेहमान लामा भी हमारे गिरोह में आकर शामिल हो गया। मैं बाहर मैदान में थी, रोज मीलों तक घोड़े को पीठ पर ही रह जाती थी लकिन लामा करीब-करीब हमेशा बराबर मेरे साथ बना रहता था। मेरे लिए अब यह भी जरूरी न रह गया कि मैं जब-तब उसके बारे में सोचा करूँ। छाया-लामा सचमुच के
आदमियों की तरह चेष्टाएँ करता......जैसे वह हमारे साथ चलता था, रुकता था और इधर उधर देखने लगता था। कभी-कभी वह बिल्कुल साफ दिखाई पड़ता और कभी-कभी छिपा रहता था। मुझे बहुधा ऐसा लगता जैसे किसी ने मेरे कन्धे पर हाथ रख दिया हो या किसी का लम्बा लबादा मुझसे छू गया हो। ____ मैंने मोटे लामा का जो आकार अपनी कल्पना से बनाया था, धीरे-धीरे उसमें कुछ परिवर्तन होने लगा। मोटा, बड़े-बड़े गोल गालोवाला वह हँसमुख लामा अब एक दुबला-पतला, पीले, सूखे चेहरे का एक छाया-लामा ही रह गया। वह मुझे अब और अधिक परेशान भी करने लगा। उसमें गुस्तानी आ गई। थोड़े में समझिए, वह मेरे अधिकार से बाहर चला गया। ___एक बार एक गड़ेरिया मेरे पास मक्खन देने आया। उसने इस तुल्प (छाया-लामा ) को सचमुच का लामा समझ लिया। ____ मैंने इस तुल्प का समाप्त ही कर देना ठीक समझा। मैं ल्हासा जाने का भी विचार कर रही थी। इसलिए मेरा इरादा और पक्का हो गया। लेकिन इस काम में मुझे ६ महीने की कड़ी मेहनत करनी पड़ी। मेरा काल्पनिक लामा किसी भाँति अपनी जीव-लीला समाप्त करने का गजी ही नहीं होता था। ___ इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि मैं अपने छाया-लामा की सृष्टि करने में सफल हो सकी थी। एक खास बात, जो ध्यान देने के योग्य है, यह है कि इस प्रकार के काल्पनिक आकार
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