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उपसंहार उस दिन सबेरे का सारा समय उसने उसी का एक चित्र खींचने में लगाया था।
वास्तव में उसने स्वयं उस शक्ल को नहीं देखा था। उपर्युक्त दोनों दृष्टान्तों में घटनाएँ कर्ता की अपनी जानकारी में नहीं घटी हैं। या एक लामा के शब्दों में-वांगदू और चित्रकार को इन घटनाओं का कर्ता नहीं कहा जा सकता।
(३) एक तीसरी विचित्र घटना जो उस श्रेणी की अलौकिक घटनाओं की एक अच्छी मिसाल है जिनमें कोई आश्चर्यजनक व्यापार अपने आप ही जाता है। उसमें कारण का कोई मूल
आधार नहीं रहता। ___ उन दिनों खाम प्रदेश में पुनाग रितोद् के समीप हमारा पड़ाव पड़ा था। एक दिन शाम को जहाँ हमारा खाना बनता था वहाँ मैं कुछ देखने गई थी। मेरे बावर्ची ने मुझसे कहा कि कुछ चीज घट गई हैं। मेरे खेमे से उसे मिलनी चाहिएँ। उसे साथ लेकर जब मैं अपने खेमे में आई तो हम दोनों ने देखा कि आरामकुर्सी पर एक तपस्वी लामा बैठे हुए हैं। हमें कोई आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि ये लामा अक्सर मुझसे बातचीत करने आ जाया करते थे। बावर्ची भी यह कहकर चला गया-"रिम्पोछे ने आने का कष्ट उठाया है। जाऊँ, जल्दी से चाय बना लाऊँ। बाद को भोजन की सामग्री ले जाऊँगा।" ___ मैं आगे को बढ़ी। मेरी दृष्टि बराबर लामा की ओर थी जो अपनी जगह पर चुपचाप निश्चल बैठे हुए थे। जैसे ही मैं पास पहुँची, वैसे ही ऐसा मालूम हुआ जैसे सामने से कोई धुंधला सा पर्दा हट रहा हो या आँखों के आगे से काई झिल्ली हट गई हो।
और एकाएक मैंने देखा कि आरामकुर्सी खाली पड़ी है--उस पर कोई नहीं है। तपस्वी लामा न जाने क्या हो गये। इतने में बावर्ची
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