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प्राचीन तिब्बत
और जिसके पास यह 'लहर' जाती है उसकी भी हिम्मत, बहादुरी, चातुरी आदि लेकर जादूगर के पास फिर वापस आ जाती है। ये लोग इस तरकीब से अपनी ताक़त, उम्र, तन्दुरुस्ती आदि बढ़ा सकते है ।
४ - तिब्बती अध्यात्मवादियों का यह भी कहना है कि कुछ चतुर तान्त्रिकों में यह भी क्षमता होती है कि जिन वस्तुओं की कल्पना वे अपने दिमाग़ में करते हैं, उनकी सृष्टि भी कर सकते हैं- जैसे आदमी, जानवर, निर्जीव चीज़, हरे मैदान, पके खेत आदि ।
यह सृष्टि केवल मायापूर्ण मृग मरीचिका नहीं होती, वरश्व इसका अपना अस्तित्व होता है। इसमें असलियत रहती है। उदाहरणार्थं एक माया का घोड़ा हिनहिनाता है, कुलाँचें भरता है। उस पर सवार आदमी रास्ते में घोड़े को रोककर नीचे उतरता है, सड़क पर मिलनेवाले यात्रियों से बातें करता है और फिर चल देता है। जादू का बना हुआ एक मकान सचमुच के आदमियों को अपनी छत के नीचे जगह देता है, आदि आदि ।
इस प्रकार की बातों का बेशुमार उल्लेख तिब्बती कहानियों में मिलता है। ख़ास तौर पर लिङ् के प्रतापी राजा गेसर की बहादुरी के विषय में तो ऐसी बहुत सी किंवदन्तियाँ प्रचलित हैं । युद्ध में राजा अपने विपक्षी के विरुद्ध बहुत से शत्रु खड़े कर देता
। माया के योद्धाओं, घोड़ों, नौकरों, सौदागरों, खमों, लामाओ आदि की रचना करता है और इनमें से हर एक जीते-जागते जीवधारियों की तरह बर्ताव करता है । युद्धभूमि में ये योद्धा उसी शूरता से शत्रु का लोहा लेते हैं जैसे सचमुच के वीर सैनिक । यह सब का सब निरी कोरी कल्पना और बच्चों के बहलाने की कहानियों के सिवा और कुछ नहीं मालूम होता। इनमें से
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