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प्राचीन तिब्बत जानकारी रखते हैं। हिन्दुओं को प्राचीन, शरीर में षट्चक्रों के होनेवाली, बात से मिलती-जुलती हुई तिब्बतियों की 'खॉर लोस' वाली धारणा है। 'खॉर लोस' ( इन्हें कभी-कभी 'कमल' भी कहते हैं ) शरीर में शक्ति के विविध केन्द्र हैं। प्रायः इन्हीं केन्द्रों को एक-एक करके शक्ति से आपूरित करने का उद्देश्य इस क्रिया में रहता है। सबसे ऊपर ( ब्रह्माण्ड में) ढोबतौङ् (सहस्रदल कमल ) रहता है और इस केन्द्र तक शक्ति को पहुंचाना साधक का अन्तिम ध्येय होता है।।
चीनियों के सान साम्प्रदायिकों का मत कुछ मिलते-जुलते तिब्बती सिद्धान्तों का प्रतिपादन करता है। अपने इन विचारों को ये इस प्रकार की उलटवासियों में प्रकट करते हैं____ "यह देखो, समुद्र से धूलि के बादल उठ रहे हैं और भूमि पर लहरों की भीषण गर्जना सुनाई पड़ रही है। ____ "मैं पैदल चल रहा हूँ पर यह क्या मैं तो एक बैल की पीठ पर सवार हूँ। ___"जब मैं पुल के पास पहुँचता हूँ तो पानी तो बहता नहीं, पुल ही बहता-बहता आगे को बढ़ रहा है।
"खाली हाथ मैं जाता हूँ फिर भी मेरे हाथों में यह फावड़े का बेंट है।....." आदि आदि ।
तिब्बत देश में प्रायः एक प्रश्न लोगों के मुंह से सुनने में आता है। उसका उल्लेख मैं यहाँ कर रही हूँ___ एक पताका हिल रही है। हिलनवाली वस्तु क्या है ? पताका या वायु ?
इसका उत्तर है हिलनेवाली वस्तु न तो पताका है और न वायु । सच पूछो तो वह तुम्हारा मस्तिष्क है।
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