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प्राचीन तिब्बत
श्रादि" । और श्रद्धा पूर्ण शिष्य एक गुफा में दौड़कर झाँकने लगा कि कहीं उसके गुरु लामा लुढ़कते - लुढ़कते वहाँ तो नहीं जा पहुँचे !
'सर पर बैठे हुए लामा' के बारे में एक दूसरी कहानी, जो मुझे एक डुग्पा* लामा ने बतलाई, इससे भी अधिक मजदार है । वह थोड़ी सी भोंड़ी ज़रूर है. पर उससे पहाड़ी चरवाहों की मनोवृत्तियों का पता भली भाँति लग जाता है
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एक अनी ( भिक्षुणी) को उसके आध्यात्मिक गुरु ने ध्यान करने का आदेश दिया और कहा कि अपने ध्यान में इस बात की कल्पना करना कि सर पर स्वयं गुरु लामा बैठे हुए हैं । न ने ऐसा ही किया और अपने ध्यान में उसे ऐसा अनुभव हुआ कि मारे बोझ के वह दबी जा रही है । गुरु लामा हट्ट े-कट्ट मोटे शरीर के आदमी थे और वह उनका बोझ अधिक समय तक न सँभाल सकी। हमें मानना पड़ेगा कि सभी देशों की स्त्रियाँ मुसीबत से जल्दी से जल्दी छुटकारा पाने के लिए पुरुषों की अपेक्षा अधिक चतुराई दिखा सकती हैं।
वह जब दुबारा अपने गुरु लामा से मिली तो लामा ने उससे पूछा कि हमारी उस आज्ञा का पालन किया था, या नहीं ?
"किया था", अनी ने उत्तर दिया “लेकिन रिम्पोछे आपका बोझा इतना भारी हो गया कि कुछ देर के बाद मैंने आपसे जगह बदल ली थी। मैं स्वयं आपको नीचे करके आपके सर पर सवार हो गई थी ।"
चित्त को एकाग्र करने के लिए अनेक प्रकार के साधन होते हैं। आम तौर पर कोई एक प्राकृतिक दृश्य चुन लिया जाता है। सुविधा के लिए समझ लीजिए वह एक उद्यान है । इस उद्यान का माणवक अपने ध्यान में स्पष्ट देखता है। बगीचे में जितने
* भूटान का रहनेवाला ।
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