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अध्यात्म की शिक्षा . १३९ पड़ता है और जिस दिन किसी को अपना गुरु मान लेते हैं उस दिन समझा जाता है कि आज जावन की एक बड़ी महत्त्वपूर्ण घटना घटी। कहने की आवश्यकता नहीं है कि इस गुरु को योग्यता पर ही शिष्य का सारा भविष्य निर्भर रहता है।
प्रारम्भ में कुछ दिनों तक गुरु अपने नये चेले की योग्यता की जाँच करता है। इसके बाद दर्शन-शास्त्र के कुछ सिद्धान्तों से वह उसका परिचय कराता है। एकाध क्यिल्कहोर का खींचना बताकर उसे उनका मतलब भी समझा देता है। ____ इसके बाद जब उसे विश्वास हो जाता है कि शिष्य होनहार है तब वह उसे अध्यात्म-शास्त्र की विधिवत् प्रणाली से शिक्षा देना प्रारम्भ करता है।
अध्यात्मवाद की शिक्षा इन तीन प्रकारों में दी जाती है। १. तावॉ-देखना, जाँच करना;
२. गोम्-पा-सोचना, ध्यान करना; ___३. श्योद्-पा-अभ्यास करना, और अन्त में इसी के द्वारा उद्देश्य की सिद्धि।
एक दूसरी कम प्रचलित तालिका इन चार शब्दों में उसी बात को एक दूसरे ढङ्ग से कहती है।
तोन :- अर्थ, कारण अर्थात् वस्तुओं की जाँच-पड़ताल| उनकी व्युत्पत्ति और उनके प्रारम्भ और अन्त का
कारण।
लोब :-विभिन्न सिद्धान्तों का दर्शन। २. गोम्:-जो कुछ सीखा-पढ़ा गया है या किसी और ढङ्ग से ज्ञात हुआ है-उसके बारे में सोचना।
विधिवत् ध्यान लगाने का अभ्यास।
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