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प्राचीन तिब्बत भी करना उसने शुरू कर दिया। फिर प्राणायाम के द्वारा श्वासवायु को ठीक करने का नम्बर आया और आरजेोपा लङ् गोम् की अन्तिम अवस्था यानी समाधि की दशा में पहुँच गया। पर अपने ध्यान में भी उसे पकते हुए गोश्त का खयाल बराबर बना रहा था। ___लङगोम्-पा को अपने इस पाप-कृत्य पर सचमुच बड़ा पश्चात्ताप हुआ। पवित्र मन्त्रों और लङगोन के अभ्यासों का अपने पेटूपन का साधन बना लेने पर उसे बड़ो लज्जा हुई। इतनो लज्जा हुई कि दूसरे दिन सबेरे जब हम सोकर उठे तो उस आरजोपा का हमारे जत्थे भर में कहीं पता न था। __ऊपर मैं बता चुकी हूँ कि त्सांग प्रान्त की गुम्बाएँ लङ-गोम्-पा की शिक्षा के लिए मशहूर हैं। यहाँ पर मैं एक ऐसी घटना दे रही हूँ जिसकी वजह से शालू गुम्बा में खास तौर से इसी विद्या की पढ़ाई होती आई है। ___ कहानो के पात्र हैं दो बड़े-बड़े लामा-यङ्गतोन दोर्जपाल जादूगर और प्रसिद्ध इतिहासकार बुस्तों। कहते हैं, एक बार यङ्गतान ने शिन्जे ( यमराज ) को अपने अधीन करने के लिए एक डबथब् करना प्रारम्भ किया। यह देवता रोज़ अपनी भूख मिटाने के लिए एक प्राणी को जीवन-लीला समाप्त करता रहता है। इस कर काण्ड को समाप्त करने के लिए ही लामा जादूगर ने अपना अनुष्ठान पूरा करने का सङ्कल्प किया था। बुस्तों को भी इसकी सूचना मिली लेकिन उसे विश्वास न हुआ कि उसका मित्र किसी प्रकार से इतने भयङ्कर देवता को अपने वश में ला सकता है। तीन और लामाओं के साथ वह उसो दिन यङ्गतोन के यहाँ चल दिया।
वहाँ पहुँचकर वह देखता क्या है कि सचमुच शिन्जे उसके मित्र के आगे हाथ बाँध खड़ा है। उसका भयङ्कर आकार इतना
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