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श्रोसवालों की उत्पत्ति
२१-जैनाचार्य श्री विजयानन्दसूरि (आत्मारामजी) अपने "जैन धर्म विषय प्रश्नोत्तर" नाम के ग्रन्थ में लिखते हैं कि पार्श्वनाथ के छठे पट्टधर आचार्य रत्नप्रभसूरि ने उपकेशपुर में ओसवाल बनाये जिनका समय श्रीवीर से ७० वर्ष बाद का है।
२२--जैनाचार्य श्री विजयधर्मसूरि ने अपने एक लेख में लिखा है कि सब से पहिले आचार्य रत्नप्रभसूरि ने श्रोसा नगरी में बीरात् ७० वर्षे ओसवाल बनाये। ____२३--जैनाचार्य श्री बुद्धिसागरसूरिने अपने "गच्छमत प्रबन्ध नाम के ग्रन्थ में लिखा है कि उपकेश गच्छ सब गच्छों में प्राचीन है इस गच्छ के आचार्य रत्नप्रभसूरि ने वीरात् ७० वर्षे ऊकेशानगरी में ऊकेश (ओसवाल ) वंश की स्थापना की।
२४-जैन धर्म का इतिहास जो 'जैन धर्म प्रसारक सभा भाव नगर से प्रकाशित हुआ है उसमें लिखा है कि वीर से ७० वर्षों बाद उकेश नगर में आचार्य श्री रत्नप्रभसूरि ने ओसवाल बनाये ।
२५-पन्यास ललितविजयजी ने " आबू मन्दिरों का निर्माण" नाम की किताब में लिखा है कि आचार्य रत्नप्रभसूरि ने वीरात् ७० वर्षे उकेश नगर में उकेश वंश की स्थापना की।
२६-५० हीरालाल, हंसराज अपने "जैन गोत्र संग्रह" नाम के ग्रंथ में लिखते हैं कि वीरसे ७० वर्ष बाद पार्श्वनाथके छ? पाट आचार्य रत्नप्रभसूरि ने उकेश नगर में उकेश वंश की स्थापना की।
२७-खरतर गच्छीय मुनि चिदानन्दजी ने अपने "स्याद्वादाऽनु भव" नामक ग्रन्थ में लिखा है कि वीरात ७० वर्षे प्राचार्य रत्नप्रमसूरि ने श्रोशा नगरी में ओसवाल वंश की स्थापना की।
२८-खरतर गच्छीय यति श्रीपालजी ने अपने जैन सम्प्रदाय शिक्षा नामक ग्रन्थ में लिखा है कि वीरात् ७० वर्षे प्राचार्य रत्नप्रभसूरि ने उकेशपुर में उकेशवंश की स्थापना की।
२९-खरतर गच्छीय यति रामलालजी ने अपने महाजन वंश मुक्तावलि नामक पुस्तक में लिखा है कि वीरात ७० वर्षे प्राचार्य
रसप्रभसूरि ने श्रोसवाल.बनाए । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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