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शंकाओं का समाधान
२३ इनका अस्तित्व काल विक्रम की ५ वीं शताब्दी (हमारी शोध से पहिली दूसरी शताब्दी) का प्रमाणित हुआ है अब आगे ज्यों ज्यों शोध कार्य से ऐतिहासिक साधन उपलब्ध होंगे त्यों त्यों इनकी प्राचीनता पर भी प्रकाश पड़ेगा।
शङ्का नं०८-कई लोग तो यहां तक कह देते हैं कि श्रोस. वालों की उत्पत्ति न तो उपकेशपुर से हुई और न रत्नप्रभसूरि द्वारा, यह तो पश्चिम दिशा से आई हुई एक जाति है। ___ समाधान-यह शङ्का केवल द्वेष और पक्षपातपूर्ण है, क्योंकि यदि ऐसा नहीं है तो इस जाति का नाम ओसवाल और उपकेशवंश क्यों है ? यह स्पष्ट बतला रहा है कि इस जाति के साथ उपकेशपुर
और उपकेशगच्छ का घनिष्ट सम्बन्ध हैक्योंकि-यह नाम अनेक प्राचीन ग्रन्थ, पट्टावलियों, वंशावलियों, चरित्रों
और शिलालेखों में लिखा मिलता है-फिर इस नाम का क्या अर्थ हो सकता है ? शङ्काकर्ता महाशय, यदि अपनी कल्पना को जनता के सामने रखने के पहिले, यदि इस जाति के उद्भवस्थान, समय और प्रतिबोधक प्राचार्य के लिए कुछ यथोचित प्रमाण ढूँढ लेते तो अच्छा होता, कारण सभ्य समाज ऐसो लीचर मनगढन्त कल्पना की कोई कीमत नहीं करते हैं, केवल हास्यपात्र ही समझ यों ही ठुकरा देते हैं।
पूर्वोक्त इन आठों शङ्काओं का समाधान करने के पश्चात् हम कितनेक ऐसे प्रमाणों का उल्लेख करना यहाँ उचित समझते हैं जिनसे वास्तव में वस्तु स्थिति का ज्ञान हो सके और सभ्य समाज उपकेशवंश अर्थात् प्रोसवंशोत्पत्ति के समय का निर्णय कर सकें।
इतिहास का विषय कोई खण्डन मण्डन का विषय नहीं है अपितु किसी भी वस्तुतत्त्व का मान्य प्रमाणों से ठीक निर्णय करने का विषय है। इस विषय में लेखक को मेग कथन सो सत्य इसे छोड़ 'सत्य सो मेरा कथन, इस पाठ को अपना कर्तव्य बनाना चाहिये । इतिहास का विषय ज्यों ज्यों उसकी समालोचना प्रत्यालोचना होती है, त्यों त्यों परिस्फुट होता है । अतः इसी लक्ष्य बिन्दु को ध्यान में रख मैंने इस महत्व के विषय में हस्तक्षेप किया है विद्वद्वन्द्य पाठक त्रुटियों के लिए मुझे क्षमा करेंगे।
ओं शान्तिः । शान्तिः !! शान्तिः !!!
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