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________________ १५६) जैन जाति महोदय. प्र-तीसरा. संघ दिलगीर हो कहा कि भगवान् हम आपके गुरुमहाराज स्वयंप्रभसूर्ति के प्रतियोधित भावक है और उपकेश पुर के श्रावक आपके प्रतियोधित है वास्ते इन पर आपका राग है खेर आपकी मरजी इसपर आचार्यश्रीने कहा" गुरुणा कथितं मुहूर्त बेलायां गच्छामि " श्रावको तुम अपना कार्य करो में मुहूर्तपर आ जाउगा, श्रावक जयध्वनि के साथ बन्दना कर विसर्जन हुवे इधर उपकेशपुर में प्रतिष्टा महोत्सव बडे ही धामधूम से हो गया पूजा प्रभावना स्वामिवात्सल्यादि से धर्म की बडा भारी उन्नति हुइ । आचार्यश्रीने “निजरूपेण उपकशे प्रतिष्ठा कृता वेक्रयरूपेण कोरंट के प्रतिष्ठाकृता श्राद्धैः द्रव्यव्यय कृतः " यहतो पहला से ही पढ़ चुके है कि आचार्य रत्नप्रभसूरि अनेक विद्याओं के पारगामी थे आप निज रूप. से तो उपकेशपुर मे और पैकय रुप से कोरंटपुर में प्रतिष्टा एक ही मुहूर्त में करवादी उन दोनो प्रतिष्टा महोत्सव में भावकोने बहुत द्रव्य खरच किया था तत्पश्चात् कोरंट संघ को यह खबर हुई कि आचार्य रत्नप्रभसूरि निज रूपसे उपकेशपूर प्रतिष्टा कराइ और यह तो वैक्रयरूपसे आये थे इसपर संघ नाराज हो कनकमभ मुनि को उस की इच्छा के न होने पर भी आचार्य पद से भूषीत कर आचार्य बना दीया इसका फल यह हुवा कि उधर श्रीमाल पोरवाड लोगों का आचार्य कनकप्रभसूरि और इधर उपकेश वंश के श्रावको के आचार्य रत्नप्रभसरि हो गये इन दोनो नगरो के नामसे दो साखा हो गाउन साखाओ के नाम से ही उपकेश गच्छऔर कोरंटगच्छ कि स्थापना हुईथी वह आज पर्यन्त मोजुर है इन दोनों मन्दिरोको प्रतिष्टा का समय में निम्न लिखित श्लोक पट्टावलि मे है. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034569
Book TitleOswal Porwal Aur Shreemal Jatiyo Ka Sachitra Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpamala
Publication Year1929
Total Pages78
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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