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(५२) जैन आति महोदय. प्र-तीसरा. पकेक बकारा कि बलि लेती है अगर एसा न किया जाय तो वह यहांतक उपद्रव करेगा की हमे हमारा जीवनमे भी शंसय है। " पुनराचार्यैः प्रोक्तं अहं रक्षां करिस्यामि " हे भव्यों तुम गवराषो मत में तुमारी रक्षा करूगा. जो सत्य ही देवि देव है वह मांस मदिरादि घृणित पदार्थ कभी नही इच्छेगे अगर कोई व्यान्तरादि देव कतूहल के मारे एसे करते ही होगे तो में उसे उपदेश करूगा हे भद्रों यह देवि देवताओं का भक्ष नहीं है पर कितने ही पाखण्डि लोग मांस भक्षण के हेतु देवि देवताओके नामसे एसी अत्याचार प्रवृति को चला दी है जिस पदार्थोसे अच्छे मनुष्यों को भी घृणा होती है तो वह देव देवि कैसे स्वीकार करेगे अगर तुम को धैर्य नहीं हो तो लहड चुरमा लापसी खाजा नालियेर गुलराबादि शुद्ध सुगंधित पदार्थोसे देवि की पूमा कर सकते हो इत्यादि उप. देश अषण कर संघने अपने अपने घरों में वह ही शुद्ध पदार्थ तय्यार करवा के सूरिजीसे अर्ज करी कि आप हमारे साथ मे चलो कारण हम को देवि का वडा भारा भय है इस पर सूरिजी भी अपने शिष्य मण्डलसे संघ के साथ देवि के मनदिर मे गये. गृहस्थ लोगों ने वह पूजापा नैवेष वगैरह देषि के आगे रखा जिन को देख देवि एकदम कोपायमान हो गइ इधर दृष्टिपात्त किया तो सूरिजी दीख पडे यस देवि का गुस्सा मम का मन मे ही रह गया तथापि देवि, सूरिजी से कहने लगी वहां महारान आपने ठीक किया मेने ही आप को विनंति कर यहां पर रखा और मेरे ही पेट पर आपने पग दीया क्या कलिकाल कि छाया आप जैसे महात्माओ पर ही पड गई है मेने पहले ही आपसे
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