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(५.) जैन जाति महोदय. प्र-तीसरा. है कि उहदमंत्रीकी एक गाय जो अमृत सदृश बुद्ध की देने वालिथी वह लुणाद्री पहाडी के पास एक कैरका झाड था वहां जातेही उसके स्तनों से स्वयं ही दुद्ध वहां भर जाता वहां क्या था कि चमुंडादेषि गयाका दुख और वैलुरेतिसे भगवान् महा. वीर प्रभुका विष (भूत्ति) तय्यार कर रहीथी पहला सूरिजी से देवीने अर्ज भी करदी थी तदानुस्वार सूरिनीने संघसे कहाथा की मूर्ति तय्यार हो रही है पर संघने पहला जैनमूतिका दर्शन न किया था वास्ते दर्शन की बडी आतुरता थी. पर सुरिजीने इस बात का भेद संघको नहीं दीया. इधर गायका दुद्धके अभाव मंत्रीश्वरने गवालियाको पुच्छा तो उसने कहा में इस बातको नहीं जानता हु कि गायका दुद्ध कमति क्यो होता है मंत्रीश्वरने पुनः पुनः उपालंभ देनेसे एकदिन गवाल गायके पोच्छे पीच्छे गया तो हमेशोंकी माफीक दुद्धको झरता देख मंत्रीको सब हाल कहा. दूसरे दिन खुप उहामंत्री वहां गया सब हाल देखा और विचार किया कि यहांपर कोई दैव योग्य होना चाहिये गायको दूर कर जमीन खोदी तो यह क्या देखता है कि शान्तमुद्रा पद्मासनयुक्त वीतराग की मूर्ति दीख पडी मंत्रीश्वरने दर्शन फरसन कर वडा आनंद मनाया कि मेरेसे तो मेरी गाय हो वडी भाग्यशालनी है कि अपना दुद्धसे भगवान् का पक्षाल करा रही है खेर मंत्रीश्वर नगरमे आया राजा और अन्योन्य विद्धानेसे सब हाल कहा बस फिर देरी ही क्याथी बढे समरोह यानि गाजा बानाके साथ संघ एकत्र हो सूरिनो महाराजके पास आये और अर्ज करी कि भगवान आपकी कृपासे हमारा महोभाग्य है कि हमने भगवान के बिंबका दर्शन कोया और अब आप भी पधारेकी भगवान् को नगर प्रवेश करावे यह सब संघ भग
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