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________________ जैनधर्मका स्वीकार. ( ४५ ) राजा उपलदेवादि सब को उत्साहावृद्धक धन्यबाद दीया कि आप लोगोंका प्रबल पुन्योदय है कि ऐसे गुरु महाराज मीले है आपको कोटीशः धन्यबाद है कि मिथ्या फांसी से छुट पवित्र धर्म को स्वीकार कीया है आगे के लिये आप ज्ञान श्रद्धा पूर्वक इस धर्म का पालनकर अपनि आत्मा का कल्यान करते रहना राजा उपलदेव उन विद्याधरों का परमोपकार माना और स्वाधर्मि भाइ सभज महमान रहने की बिनति करी इसपर वह आपस मे वात्सल्यता करते हुवे बाद देवियों और विद्याधर सूरिजी को वन्दन नमस्कार कर विसर्जन हुवे । अब तो उपकेशपुर के घर घरमें जैन धर्म की तारीफ होने लगी और रहे हुवे लोग भी जैन धर्म को स्वीकार करने लगें यह बात वाममार्गिमत्त के अध्यक्षो के मट्टों तक पहुंच गई की एक जैन सेबडा आया है वह न जाने राजा प्रज्यापर क्या जादु डारा कि वह सबको जैन बना दीया. अगर इस पर कुच्छ प्रयत्न न किया जावेगा तो अपनि तो सब की सब दुकानदारी उठ जावेगा । यह तो उनको विश्वास था कि राजा प्रज्या कों जैसे पाठ पढावेर्गे वैसे ही मानने लग जायेंगे सेबडाने उसे जैन बनाया तो चलो अपुन फोरसे शैब बना देंगें एसा सोच वह सब जमात की जमात सज धज के राज सभामे आये. परं जैसे किसीका सर्व श्रेय लुट लेने से उन पर दुर्भाव होता है वैसे उन पाखण्डियों पर राजा प्रजा का दुर्भाव हो गया था. राजाने न तो उनको आदर सत्कार दोया नं उने बोलाया इसपर वह लोग कहने लगे कि हे राजन् ! हम ज्ञानते है कि आप अपने पूर्वजो से चला आया पवित्र धर्म को छोड अर्थात् पूर्वजों की परम्परा पर लकीर फेर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034569
Book TitleOswal Porwal Aur Shreemal Jatiyo Ka Sachitra Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpamala
Publication Year1929
Total Pages78
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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