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________________ उपकेशपट्टन की स्थापना. (२९) नामपर चन्द्रावती नगरी आबाद करीथी चन्द्रसेनने चन्द्रा. वती नगरी में अनेक मन्दिर बनाया जिस्की प्रतिष्ठा आचार्य स्वयंप्रभसूरि के करकमलोंसे हुइ थी अस्तु चन्द्रावतो नगरी विक्रमकी बारहवी तेरहवी शताब्दी तक तो बडी आबाद थी ३६० घरतो क्रोडपति के थे और ३०० जैन मन्दिर थे हमेश स्वा मोवात्सल्य हुषा करता था आज उसका खन्डहर मात्र रह गया है यह समयकी ही बलीहारी है इधर भिन्नमाल नगर शिवोपासों का नगर बन गया वहांका कर्ता हर्ता सब ब्राह्मण ही थे, राना भीमसेन एक नाम का ही राना था राजा भीमसेनके दो पुत्र थे एक श्रीपुंज दूस रा उपलदेव पटावली नं.३ में लिखा है कि भीमसेनका पुत्र श्रीपुंज और श्रीपुंज के पुत्र सुरसुंदर और उपलदेव पर समय का मीलन करनेसे पहली पट्टावलीका कथन ठीक मीलता हुवा है। महाराज भीमसेनके महामात्य चन्द्रवंशीय सुवड था उसके छोटा भाइका नाम उहड था सुघड के पास अठारा क्रोडका द्रव्य होनेसे पहला प्रकोट में और उहड के,पस नीनागये लक्षका द्रव्य होनेसे दूसरा कोटमे बसता था एक समय उहड के शरीरमे रात्रिमें तकलीफ होनेसे यह विचार हुवा कि हम दो भाइ होने पर भी एक दूसरे के दुःख सुखमें काम नहीं आते है वास्ते एक लक्ष द्रव्य वृद्ध भाइसे ले में क्रोडपति हो पहला प्रकोट में जावसु. शुभे उहड अपने भाई के पास ना के एक लक्ष द्रव्य की याचना करी इसपर भाईने कहा की तुमारे विगर प्रकोट शुन्य नहीं है (दूसरी पदावलि मे लिख है की भाई की ओरत ने एसा कहां ) कि तुम करज ले क्रोडपति होनेकी कौशीस करते हों इत्यादि यह अभिमान का वचन उहड को बडा दुःखदाई हुवा झट वहांसे निकल Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034569
Book TitleOswal Porwal Aur Shreemal Jatiyo Ka Sachitra Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpamala
Publication Year1929
Total Pages78
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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